ड्रीमलैंड मेला विवाद: न्यायिक आदेशों की अनदेखी और प्रशासनिक चूक का खुलासा

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शैक्षणिक संस्थान की भूमि पर व्यावसायिक आयोजन, उच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना

जौनपुर। शहर के केंद्र में स्थित बीआरपी इंटर कॉलेज के मैदान में एक बार फिर “ड्रीमलैंड प्रदर्शनी मेला” का आयोजन किया गया है। यह आयोजन न केवल कानूनी, बल्कि नैतिक दृष्टिकोण से भी गंभीर सवालों के घेरे में है। वर्ष 2017 में उच्च न्यायालय के निर्देश और नगर मजिस्ट्रेट द्वारा अनुमति रद्द किए जाने के बावजूद, 2025 में इस मैदान पर मेला लगने की घटना प्रशासनिक अनदेखी और न्यायिक आदेशों की अवमानना का प्रतीक बन गई है।

2017: न्यायिक आदेश और अनुमति रद्द

वर्ष 2017 में बीआरपी इंटर कॉलेज के मैदान पर ड्रीमलैंड प्रदर्शनी मेला आयोजित करने की अनुमति दी गई थी। स्थानीय नागरिक सत्यप्रकाश सिंह और आनंद शंकर श्रीवास्तव की आपत्तियों के बाद, नगर मजिस्ट्रेट ने मामले की सुनवाई की। जांच में पाया गया कि:

यह भूमि राजस्व रिकॉर्ड में “कायस्थ पाठशाला जौनपुर” के नाम पर दर्ज है।

तत्कालीन प्रधानाचार्य ने मेला लगाने की अनुमति नहीं दी थी।

उच्च न्यायालय के आदेश (रिट याचिका संख्या 26430/2015) के अनुसार, शैक्षणिक संस्थानों की भूमि का उपयोग व्यावसायिक गतिविधियों के लिए नहीं किया जा सकता।

इन तथ्यों के आधार पर 9 अगस्त 2017 को नगर मजिस्ट्रेट ने अनुमति रद्द कर दी थी।

उच्च न्यायालय का निर्देश

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट किया था:

“Educational institution fields are meant for students and not for commercial activities like fairs.”
अर्थात, शैक्षणिक संस्थानों की भूमि का उपयोग मेले जैसे व्यावसायिक आयोजनों के लिए नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने भविष्य में ऐसे आयोजनों पर पूरी तरह से रोक लगाने के निर्देश दिए थे।

025: फिर से आदेशों की अनदेखी

न्यायिक आदेशों और 2017 में अनुमति रद्द होने के बावजूद, 2025 में बीआरपी इंटर कॉलेज के मैदान पर फिर से मेला लगाया गया।

क्या प्रशासन ने इस बार कोई नई अनुमति दी?

यदि अनुमति नहीं दी गई, तो यह आयोजन अवैध है और न्यायालय की अवमानना का स्पष्ट मामला बनता है।

यदि अनुमति दी गई है, तो पूर्व आदेशों को खारिज करने का आधार क्या था?

शैक्षणिक और सामाजिक प्रभाव

स्थानीय नागरिकों और शिक्षकों का कहना है कि इस तरह के आयोजनों से:

1.विद्यार्थियों की पढ़ाई बाधित होती है: मेले के शोर-शराबे और भीड़ से विद्यालय का वातावरण प्रभावित होता है।

2.सुरक्षा और अनुशासन पर असर: बाहरी लोगों की भीड़ और अस्थायी दुकानों के कारण स्कूल परिसर में सुरक्षा संबंधी समस्याएं उत्पन्न होती हैं।

3.यातायात व्यवस्था चरमराती है: मेले की वजह से आसपास के इलाकों में यातायात बाधित होता है।

4.असामाजिक गतिविधियों का बढ़ना: इस तरह के आयोजनों में असामाजिक तत्वों का जमावड़ा लगने की संभावना रहती है।

प्रशासन की चुप्पी: सवालों के घेरे में

स्थानीय नागरिकों और शिक्षकों का आरोप है कि:

प्रशासन ने 2017 के स्पष्ट आदेशों के बावजूद मेला लगाने की अनुमति कैसे दी?

क्या यह राजनीतिक दबाव का नतीजा है?

क्या नगर मजिस्ट्रेट और जिलाधिकारी ने इस बार कोई नई अनुमति दी है, और अगर हां, तो क्या यह अनुमति न्यायालय के आदेश का उल्लंघन नहीं है?

जनता की मांग: निष्पक्ष जांच और कार्यवाही

स्थानीय लोगों और शिक्षकों ने मांग की है कि:

इस आयोजन की न्यायिक और प्रशासनिक स्तर पर उच्चस्तरीय जांच कराई जाए।

यदि आयोजन अवैध है, तो इसे तत्काल रोका जाए।

2017 के आदेशों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई हो।

शैक्षणिक संस्थान का मैदान छात्रों की शिक्षा और विकास का स्थान है, न कि व्यापारिक गतिविधियों का केंद्र। प्रशासन और न्यायपालिका की निष्क्रियता से आमजन में रोष व्याप्त है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि प्रशासन न्यायिक आदेशों का सम्मान करता है या सत्ता के दबाव में चुप्पी साधे रहता है।

क्या यह न्यायालय की अवमानना का मामला नहीं?
न्यायिक आदेशों और प्रशासनिक नियमों के उल्लंघन के खिलाफ उठे इस सवाल का जवाब अब जिला प्रशासन और न्यायपालिका को देना होगा।

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