बचपन में माँ ने…धमकाते हुए…
मुँह खुलवाकर…मिट्टी न खाने की,
थोड़ा बड़े होने पर….!
बापू ने झूठ के बाबत…डाँटकर…
फिर मित्रों ने….बात-बात पर…
विद्या माँ की कसम खिलाकर,
गवाही माँगी है….
परीक्षा में नंबरों की गवाही,
कोर्ट-कचहरी में हर बात में गवाही…
ऑफिस में सही काम करने की,
मजदूरी में आराम न करने की….
सभी को चाहिए….गवाही…
मियां-बीवी में भी…कभी-कभी…!
वफादारी की गवाही….तो कभी…
दुनियावी जिम्मेदारी की गवाही…
बाल-बच्चों में कभी-कभार,
अपनी काबिलियत दिखाने की गवाही…
इतना ही नहीं….!
मिली हुई हर चोट पर भी…
दुनिया गवाही माँगती है….
झूठे-सच्चे वादों के लिए…
आपके पाक-नापाक इरादों के लिए भी
दुनिया को गवाही चाहिए….
खुद अपनो से ही….!
खाए हुए धोखों पर भी….
लोगों को चाहिए…गवाही पर गवाही
गौर से देखें तो….
पूरी की पूरी जवानी….!
गवाही दर गवाही की होती है कहानी
बुढ़ापे में…जब सामने हो तन्हाई..
तो…देनी पड़ती है पछतावे की गवाही….
मित्रों…क्या आपको नहीं लगता….?
दुनिया की रीति है….गवाही…
यहाँ हर बात की गवाही चाहिए….
सच को सच और झूठ को झूठ…!
साबित करने के लिए भी….
गवाही चाहिए…..गवाही चाहिए….
अब चलो…सही माना मित्रों….कि…
नियम-कानून और व्यवस्था के लिए,
फरमाईस के सापेक्ष…..!
सुबूत की आजमाइश होनी चाहिए…
पर….प्रश्न इस बात का है कि….!
इस गवाही में….
गवाह की सच्चाई के लिए भी,
अलग से….क्यों गवाही चाहिए….?
अलग से….क्यों गवाही चाहिए….?
रचनाकार….
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस उपायुक्त, लखनऊ