भगवान बुद्ध और बुद्ध पूर्णिमा – डॉ दिलीप कुमार सिंह

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भगवान बुद्ध मानवता के सर्वोच्च प्रतिमान बन चुके हैं। भगवान श्री राम और भगवान श्री कृष्ण जितने लोकप्रिय हुए हैं, उससे कहीं अधिक भगवान बुद्ध का नाम और शिक्षाएं संपूर्ण संसार में प्रसारित हुई हैं। सच्चे अर्थों में उन्हें विश्व का और ज्ञान का प्रकाश स्तंभ कहा जा सकता है। वर्तमान में कम से कम 50 देशों में भगवान बुद्ध के मत के अनुयायी रहते हैं, जिनकी संख्या 180 करोड़ से अधिक है। यह इस बात का प्रमाण है कि ढाई हजार से अधिक वर्षों के बाद भी भगवान बुद्ध की शिक्षाएं और विचार इस धरती पर जीवंत हैं।

भगवान बुद्ध का जन्म और प्रारंभिक जीवन

भगवान बुद्ध का जन्म लुंबिनी नामक स्थान पर हुआ था, जो प्राचीन भारत के एक गणराज्य में स्थित था और वर्तमान में नेपाल का हिस्सा है। इस तथ्य से स्पष्ट है कि प्राचीन काल में नेपाल भारत का एक अंग था। इसी संदर्भ में यह ध्यान देना चाहिए कि भगवती सीता के पिता महाराज जनक, जो ब्रह्म ऋषियों से भी बड़े ज्ञानी माने जाते थे, इसी मिथिला के थे।

भगवान बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। उनका जन्म महामाया देवी के गर्भ से हुआ, लेकिन जन्म के कुछ समय बाद ही उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। इसके बाद उनका पालन-पोषण उनकी सौतेली माता और मौसी प्रजापति गौतमी ने किया, जिससे उनके नाम के साथ ‘गौतम’ जुड़ गया।

सिद्धार्थ के जन्म के समय ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि यह बालक या तो चक्रवर्ती सम्राट बनेगा या महान सन्यासी होगा, जिसका ज्ञान संपूर्ण पृथ्वी को प्रकाशित करेगा। उनके पिता, राजा शुद्धोधन, ने हर संभव प्रयास किया कि सिद्धार्थ को संसार के दुख और पीड़ा से दूर रखा जाए। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।

सांसारिक सुखों से वैराग्य

राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ को सांसारिक सुखों में व्यस्त रखने के लिए तीन शानदार महल, सुंदर बाग-बगीचे और यशोधरा जैसी सुंदर पत्नी प्रदान की। लेकिन सिद्धार्थ को सांसारिक जीवन की वास्तविकता के दर्शन हुए। एक दिन महल से बाहर निकलने पर उन्होंने एक वृद्ध, एक रोगी, एक मृत व्यक्ति और एक सन्यासी को देखा। इन दृश्यों ने उनके मन को गहराई तक झकझोर दिया और उन्हें संसार के दुखों का कारण जानने की तीव्र इच्छा हुई।

ज्ञान की खोज और बुद्धत्व की प्राप्ति

सिद्धार्थ ने सांसारिक जीवन का त्याग कर सन्यासी बनने का निर्णय लिया। एक रात, अपनी पत्नी और पुत्र राहुल को छोड़कर, वे अपने सारथी के साथ महल से निकल पड़े। अपने वस्त्र और आभूषण त्यागकर, उन्होंने ज्ञान की खोज शुरू की। उन्होंने अलार कलाम और उद्रक रामपुत्र जैसे गुरुओं से शिक्षा ली, लेकिन उनकी आत्मा को संतोष नहीं मिला।

इसके बाद उन्होंने कठोर तपस्या की और अपने शरीर को अत्यधिक कष्ट दिए। लेकिन यह भी उन्हें परम ज्ञान की ओर नहीं ले जा सका। अंततः, बोधगया में एक विशाल पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यानमग्न होकर उन्होंने प्रण लिया कि जब तक उन्हें परम ज्ञान प्राप्त नहीं होगा, वे वहां से नहीं उठेंगे। गहन ध्यान और आत्म-संयम के बाद, उन्हें पूर्ण ज्ञान प्राप्त हुआ। इस घटना को बुद्धत्व की प्राप्ति के रूप में जाना जाता है।

भगवान बुद्ध की शिक्षाएं

भगवान बुद्ध ने अपने शेष जीवन को मानवता के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने अहिंसा, करुणा, और परोपकार के संदेश को प्रसारित किया। उन्होंने लोगों को सिखाया कि दुख का कारण तृष्णा (इच्छा) है, और इसे त्यागने से ही मनुष्य सुख प्राप्त कर सकता है। उनकी शिक्षाएं संपूर्ण मानव जाति के लिए अमूल्य हैं।

उन्होंने अंगुलिमाल जैसे कुख्यात डाकू को भी अपनी शिक्षाओं से परिवर्तित कर दिया और उन्हें एक साधु बना दिया। उन्होंने अपने जीवन में अनेक स्थानों पर धर्म प्रचार किया और समाज में व्याप्त अंधविश्वास और रूढ़ियों को समाप्त करने का प्रयास किया। भगवान बुद्ध ने कभी अपने विचारों को एक अलग धर्म के रूप में प्रस्तुत नहीं किया। उनके अनुसार, उनका उद्देश्य केवल सनातन धर्म की कमियों को दूर करना था।

बुद्ध पूर्णिमा का महत्व

भगवान बुद्ध की जयंती वैशाख पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। इसे बुद्ध जयंती, वेसाक, विशाख, बुन सागा दाव, फो दैन जैसे नामों से भी जाना जाता है। यह दिन उनके जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण तीनों घटनाओं का प्रतीक है। यह दिन संपूर्ण विश्व में शांति और करुणा का संदेश देने के लिए मनाया जाता है।

भारत में लुंबिनी, बोधगया, सारनाथ और कुशीनगर जैसे पवित्र स्थलों पर यह पर्व विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह भगवान बुद्ध की शिक्षाओं और उनके जीवन को याद करने का अवसर है। सम्राट अशोक ने उनकी शिक्षाओं को देश-विदेश में प्रसारित कर इस महान विरासत को आगे बढ़ाया।

निष्कर्ष

भगवान बुद्ध केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि मानवता के आदर्श और प्रेरणा स्रोत हैं। उनकी शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी ढाई हजार वर्ष पहले थीं। उनके द्वारा दिए गए शांति, अहिंसा और करुणा के संदेश संपूर्ण विश्व को राह दिखाने वाले हैं। वर्तमान समय में जब हिंसा और असहिष्णुता बढ़ रही है, तब भगवान बुद्ध के विचार हमें सही दिशा दिखा सकते हैं। बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर, हमें उनकी शिक्षाओं को आत्मसात करने और उन्हें अपने जीवन में उतारने का संकल्प लेना चाहिए।

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