शाही विरासत का बदला मंजर : राजा की धरोहर अब किराये पर:

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जौनपुर, उत्तर प्रदेश — इतिहास की गहराइयों से निकलकर अब आधुनिकता की राह पर चलते हुए जौनपुर के राजा की शाही धरोहर को अब किराए पर देने का फैसला किया गया है। यह खबर न केवल स्थानीय निवासियों के लिए चौंकाने वाली है, बल्कि इतिहास प्रेमियों के बीच भी चर्चा का विषय बन गई है।

जौनपुर, जो कि शार्की वंश के गौरवशाली अतीत का गवाह रहा है, यहां की पुरानी हवेलियाँ, कोठियाँ और शाही भवन आज भी उस युग की भव्यता को बयां करते हैं। इन्हीं में से एक ऐतिहासिक इमारत, जो कि जौनपुर के राजा की निजी संपत्ति मानी जाती है, अब व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए किराये पर उपलब्ध कराई जा रही है।

क्यों लिया गया यह फैसला?

शाही परिवार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इस फैसले के पीछे कई व्यावहारिक कारण हैं। पुराने महलों और भवनों के रखरखाव में काफी खर्च आता है। इन इमारतों को संरक्षित रखने के लिए वित्तीय सहायता की जरूरत होती है। सरकार या अन्य किसी संस्था से पर्याप्त सहयोग न मिलने के कारण अब शाही परिवार ने यह रास्ता अपनाया है कि इन इमारतों को फिल्मों, वेडिंग शूट्स, कॉर्पोरेट इवेंट्स और होटलों के रूप में उपयोग के लिए किराये पर दिया जाए।

धरोहर का नया उपयोग——

अब यह शाही धरोहर केवल इतिहास की किताबों में ही नहीं, बल्कि लोगों की रोज़मर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन सकती है। कोई इस इमारत में शादी समारोह आयोजित कर सकता है, तो कोई इसे वेब सीरीज़ या फिल्मों के लिए लोकेशन के तौर पर इस्तेमाल कर सकता है। कुछ होटल और रिसॉर्ट कंपनियां भी इस धरोहर को लक्जरी हेरिटेज होटल में बदलने की योजना बना रही हैं।

स्थानीय प्रतिक्रिया———

स्थानीय लोगों के बीच इस फैसले को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। कुछ लोगों का मानना है कि इससे जौनपुर की ऐतिहासिक पहचान को नया जीवन मिलेगा और पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। वहीं, कुछ लोगों का यह भी कहना है कि यह धरोहर आम लोगों की विरासत है और इसे व्यापार का साधन बनाना उचित नहीं है।

सरकारी नजरिया——–

पुरातत्व विभाग और पर्यटन विभाग ने अभी तक इस मामले पर कोई औपचारिक बयान नहीं दिया है। हालांकि, यदि यह प्रयोग सफल होता है, तो यह अन्य ऐतिहासिक स्थलों के लिए भी एक उदाहरण बन सकता है।

निष्कर्ष——–

जौनपुर के राजा की यह धरोहर अब केवल इतिहास की गाथा नहीं, बल्कि वर्तमान की एक सक्रिय हिस्सा बनने जा रही है। जहां एक ओर यह फैसला धरोहरों के संरक्षण और आर्थिक उपयोग के बीच संतुलन बनाने की कोशिश है, वहीं यह हमारे इतिहास को आम लोगों के और करीब लाने का जरिया भी बन सकता है।

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