जौनपुर, उत्तर प्रदेश: जौनपुर जिले में स्थित प्रसिद्ध रामघाट पर हाल ही में एक गंभीर और चिंताजनक स्थिति सामने आई है, जहां शवों को जलाने के लिए टायर बेचे जा रहे हैं। यह मामला न केवल पर्यावरण के लिए एक गंभीर खतरा बन चुका है, बल्कि समाजिक और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी समस्याएं उत्पन्न कर रहा है।
रामघाट पर जलाने के लिए टायर का उपयोग मुख्यतः पारंपरिक शवदाह प्रक्रियाओं के दौरान किया जा रहा है, ताकि शवों को जल्दी और अधिक तापमान पर जलाया जा सके। यह कदम आर्थिक दृष्टिकोण से शवदाह के खर्च को कम करने के लिए लिया जा सकता है, लेकिन इसके पर्यावरणीय और स्वास्थ्य प्रभाव खतरनाक हैं।
टायर जलाने से होने वाले प्रदूषण का असर:
1.वायु प्रदूषण: टायर जलाने से भारी मात्रा में जहरीली गैसों का उत्सर्जन होता है, जिनमें कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, और विभिन्न प्रकार के हाइड्रोकार्बन शामिल होते हैं। ये गैसें पर्यावरण को नुकसान पहुँचाती हैं और लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती हैं।
2.स्वास्थ्य पर प्रभाव: टायर जलाने से निकलने वाली जहरीली गैसें और धुआं न केवल आसपास के निवासियों के लिए खतरनाक हैं, बल्कि शवदाह स्थल पर आने वाले तीर्थयात्रियों और अन्य लोगों के लिए भी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकते हैं। इन प्रदूषित वायुओं से अस्थमा, सांस की बीमारियाँ, और दिल के रोगों का खतरा बढ़ सकता है।
3.प्राकृतिक संसाधनों का नुकसान: टायर जलाने से मिट्टी और पानी में भी प्रदूषण का खतरा बढ़ता है। जलने के दौरान टायर से निकलने वाले केमिकल्स मिट्टी और जलस्रोतों को भी प्रभावित कर सकते हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक असर पड़ता है।
जिम्मेदार कौन?
इस गंभीर स्थिति के लिए कई जिम्मेदार पक्ष हो सकते हैं:
1.स्थानीय प्रशासन: रामघाट और आसपास के इलाकों में टायर की बिक्री और शवदाह के लिए टायर जलाने की अनुमति देने वाले स्थानीय प्रशासन और नगर निगम के अधिकारियों पर सवाल उठते हैं। यदि कोई उचित नियमावली और पर्यावरण सुरक्षा की निगरानी होती तो यह समस्या उत्पन्न नहीं होती। स्थानीय प्रशासन को तुरंत इस मुद्दे का समाधान ढूंढने की जरूरत है।
2.व्यापारी और टायर विक्रेता: रामघाट पर शवदाह के लिए टायर की बिक्री करने वाले व्यापारी भी इस मामले के लिए जिम्मेदार हैं। वे अपनी आर्थिक लाभ के लिए इस प्रदूषणकारी प्रक्रिया को बढ़ावा दे रहे हैं। उन्हें इस काम को बंद करने और वैकल्पिक समाधानों का उपयोग करने की दिशा में कदम उठाने की आवश्यकता है।
3.समाज और धार्मिक संस्थाएं: रामघाट एक धार्मिक स्थल है, और यहां शवदाह की प्रक्रिया धार्मिक मान्यताओं का हिस्सा मानी जाती है। यहां के पुजारियों और स्थानीय समुदाय को इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए जागरूक करने की आवश्यकता है। उन्हें चाहिए कि वे धार्मिक आस्था के साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा के लिए भी प्रयास करें।
समाधान:
1.नियमों का कड़ाई से पालन: स्थानीय प्रशासन को शवदाह की प्रक्रिया में पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए कठोर नियम लागू करने चाहिए। शवदाह के लिए जलाने वाली सामग्री की जांच और निगरानी होनी चाहिए ताकि टायर जैसे प्रदूषणकारी तत्वों का उपयोग न हो।
2.वैज्ञानिक तरीके अपनाना: शवदाह के लिए पारंपरिक विधियों के स्थान पर अधिक वैज्ञानिक और पर्यावरण के अनुकूल विधियों का उपयोग किया जा सकता है। जैसे कि इलेक्ट्रिक शवदाह गृह, जो प्रदूषण के स्तर को न्यूनतम रखते हैं और जल्दी जलाने की प्रक्रिया भी पूरी होती है।
3.सामाजिक जागरूकता: स्थानीय समुदाय और धार्मिक संस्थाओं को जागरूक करना चाहिए कि पर्यावरण का संरक्षण करना हमारी जिम्मेदारी है, और धार्मिक कार्यों में भी पर्यावरण की सुरक्षा का ध्यान रखा जाए।
4.विकल्पों की उपलब्धता: शवदाह के पारंपरिक तरीके के स्थान पर ऐसे वैकल्पिक समाधानों को बढ़ावा देना चाहिए, जो कम प्रदूषणकारी और अधिक सुरक्षित हों।
निष्कर्ष:
रामघाट में शवों को जलाने के लिए टायर का उपयोग न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि यह लोगों की स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक साबित हो रहा है। इस मुद्दे को सुलझाने के लिए प्रशासन, व्यापारी, और समाज को एकजुट होकर काम करना होगा। अब समय है कि हम अपनी पारंपरिक प्रक्रियाओं को पर्यावरण के अनुकूल तरीके से अपनाएं और प्रदूषण को कम करने के प्रयासों में योगदान दें।