चावल-मछली कृषि प्रणाली : डॉ. मोनिका रघुवंशी

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चावल के खेत कृषि योग्य भूमि के जलमग्न क्षेत्र होते हैं जिनका उपयोग अर्धजलीय फसलें उगाने के लिए किया जाता है। चावल की फसल जमा पानी युक्त खेत के अंदर उगती हैं। खेत में पाना की व्यवस्था के लिए पानी के नाले बनाए जाते हैं जिनसे जल स्तर बना रहे। इन नालों में छोटी मछलियां डाल दी जाती हैं जो जमा पानी में चावल की फसल में लगने वाले कीड़े व अन्य जीव खा जाती हैं जिससे बीमारियों का खतरा कम हो जाता है और कीटनाशकों की आवश्यकता नहीं होती है। इस दौरान मछलियों को पर्याप्त भोजन प्राप्त होने से उनका विकास बढ़ने लगता है। फसल के साथ-साथ मछलियों का आकार व संख्या भी बढ़ जाती है।

चावल और मछली साझेदारी के लाभ –

चावल और मछली की सहजीवी साझेदारी है, जहां दोनों को एक साथ विकसित किए जाने से लाभ मिलते हैं। चावल के पेड़ मछली के लिए आश्रय, छांव और कम पानी का तापमान प्रदान करते हैं, साथ ही कीड़ों और अन्य छोटे जीवों के भोजन का स्रोत भी हैं। बदले में मछलियाँ चावल की वृद्धि को लाभ पहुँचाने के लिए नाइट्रोजनयुक्त अपशिष्ट प्रदान करती हैं जो खाद का काम करते हैं। कीटों, बीमारियों और प्रतिस्पर्धी खरपतवारों को नियंत्रित करने में भी मछलियाँ मदद करती हैं।

“अतिरिक्त लाभ”
फैसलों से महत्वपूर्ण धान चावल की उत्पत्ति होती है, साथ ही मछलियों की बिक्री से भी किसानों की आमदनी होती है। चावल-मछली कृषि प्राकृतिक प्रणाली है जिसमें खतरनाक कीटनाशकों का उपयोग आवश्यक नहीं इस कारणवश इससे स्वास्थ्य को नुकसान नहीं होता।

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