पूर्व सांसद ने किया राज्य सरकार के निर्णय का स्वागत
संवाददाता, मुंबई
देश को एकता और अखंडता के सूत्र में पिरोने वाली हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी पर किसी प्रकार का विवाद उचित नहीं है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत त्रिसूत्रीय भाषा नीति को अपनाने से न केवल सांस्कृतिक एकता बल्कि देश के आर्थिक विकास को भी प्रोत्साहन मिलेगा। यह विचार बीजेपी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा के पूर्व सांसद जयप्रकाश निषाद ने व्यक्त किए।
मुंबई प्रवास के दौरान एक सामाजिक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि भाषा और प्रांत के आधार पर राजनीति करना देश के विकास के लिए हानिकारक है। महाराष्ट्र सरकार द्वारा कक्षा 1 से मराठी और अंग्रेजी के साथ हिंदी को अनिवार्य भाषा के रूप में पढ़ाने के निर्णय का स्वागत करते हुए पूर्व सांसद ने इसे एक सकारात्मक कदम बताया।
हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा मिलना चाहिए
जयप्रकाश निषाद ने कहा कि हिंदी देश की सर्वाधिक बोली और पढ़ी जाने वाली भाषा है। यह राजभाषा होने के साथ-साथ हमारी सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा देना समय की मांग है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश सर्वांगीण विकास की दिशा में तेजी से अग्रसर है। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और महाराष्ट्र में उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में प्रगति की नई इबारत लिखी जा रही है।
कार्यक्रम में वरिष्ठ नेताओं और समाजसेवियों की उपस्थिति
ठाणे में आयोजित इस कार्यक्रम में बीजेपी के संत कबीर नगर जिला महामंत्री गणेश पांडेय और ब्लॉक प्रमुख राममिलन यादव भी उपस्थित थे। गणेश पांडेय ने कहा कि पार्टी सत्ता और संगठन के अभूतपूर्व तालमेल से आम जनता के कल्याण के लिए कार्य कर रही है। वहीं, ब्लॉक प्रमुख राममिलन यादव ने योगी सरकार की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह सरकार जाति-पाति की राजनीति से ऊपर उठकर सभी वर्गों के हित में कार्य कर रही है।
समाजसेवियों और पत्रकारों ने किया स्वागत
इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार सूर्यप्रकाश मिश्र, युवा समाजसेवी धर्मेंद्र सिंह, ज्ञान बहादुर सिंह, आलोक तिवारी और कुलदीप शिंदे सहित विभिन्न क्षेत्रों से आए गणमान्य व्यक्तियों ने पूर्व सांसद और अन्य अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में विभिन्न वर्गों के लोग उपस्थित रहे, जिन्होंने अपने विचार साझा किए और हिंदी के महत्व पर जोर दिया।
जयप्रकाश निषाद के विचारों को सुनने के बाद उपस्थित जनसमूह ने भाषा और एकता के इस मुद्दे पर जागरूकता बढ़ाने का संकल्प लिया।