काव्य व्यंग्य : राजनीतिक कार्यकर्ता की अभिलाषा

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मन की मानो राजनीति में अब ना केहू अटल रही !
उहे निरहुआ सफल रहीं, जे नेता जी से सटल रहीं !!
इक्षा है की नेता जी के साथ खड़ा, तश्वीर खींचाऊ !
लेके काफिला, ओढ़ के गमछा, आगे पीछे पाया जाऊ !!

मुझे छोड़ देना जग वालो उस पथ पर देना तुम फेंक,
जिस पथ लूटने जनता कों, ये नेता जाए एक से एक !

बड़का वाला कार्यकर्ता के लिस्ट में नाम हमारा होत,
सांसद जी के वित्तनिधि का कमीशन वारा न्यारा होत !
हमहू विधायक बन जाइत त खूबे लूट मचाईत हो,
खा जाईत लैट्रिन और टोटी चाहें केतनो सारा होत !!

मुझे खोज लेना तुम तब भी, ज़ब मै बजाऊं ढ़ोल अनेक,
जिस पथ लूटने जनता कों, ये नेता जाए एक से एक !!

नेता जी के ट्विटर वाला , बढ़का हैंडल बन इतराऊं,
सोशल मिडिया पर शान से, हल्ला गुल्ला खूब मचाऊं !
व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी का बड़का टीचर मै बना हुआ,
राजनीति के चक्कर में खट्टा रायता खूब फैलाऊं !!

मुझे जेल हो जाए गर तो सोर्स जुगाड़ से लेना देख,
जिस पथ लूटने जनता कों, ये नेता जाए एक से एक !

बजट सत्र में मुझसा कोई अर्थशास्त्री ना कहलाया,
औरो से पैसे लेकर के मंत्री जी तक पहुँचाया !
राजनीति में दल दलदला और बहुत कुछ कहलाऊ,
जीव जंतु सा रेगता चौकी थानो पर पाया जाऊ !!
नेता जी के चमचों में सबसे ज्यादा नाम कमाऊं !
आए इलेक्शन तो मै झूमु, जाए इलेक्शन तो मै गाँऊ !!

मुझे पीट लेना तब तुम और हाथ लेना खूब सेक,
जिस पथ लूटने जनता कों, ये नेता जाए एक से एक !!

   : *पंकज सीबी मिश्रा, जौनपुर यूपी*

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