“लेख” जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा एवं महत्व

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शाहगंज जौनपुरlव्रतों एवं पर्वों के कारण ही भारत विश्व में अपनी एक अलग पहचान रखता है। यहाँ पत्थर से लेकर पानी तक में ईश्वर का अंश मानकर उसकी पूजा की जाती है। सुहागन स्त्रियाँ जहाँ पति की लम्बी आयु के लिए अनेकों प्रकार के व्रत अनुष्ठान करती है, तो वही माताएँ अपनी संतान के लिए अनेकों व्रत रखती है।
संतान के लिए रखें जाने वाले व्रतों में सबसे महत्वपूर्ण व्रत जीवित्पुत्रिका यानि जिउतिया को माना जाता है। ऐसा वैदिक पुराणों में वर्णित है कि जो माताएँ आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जीउतवाहन देव की पूजा पूरे विधान से करेगी उसके पुत्र को जीवन में कोई कष्ट नहीं होगा।
यह व्रत वह सभी सौभाग्यवती स्त्रियाँ रख सकती है जिनको संतान होती है।वह स्त्रियाँ भी इस व्रत का अनुष्ठान कर सकती है जिन्हें कोई संतान नहीं है।
“व्रत की विधि”:- इस व्रत की विधि बहुत ही कठिन है व्रत रखने वाली स्त्री को पूरे 24 घंटे निर्जला व्रत रखना पड़ता है। इस दिन चक्की (जाॅंता) से पिसे आटा में गुड़ और शुद्ध देशी घी मिला कर पकवान बनाया जाता है। फल फूल कच्चा दूध तथा अन्य सामग्री को एकत्र कर बहुत सी स्त्रियाँ एक साथ बैठ कर इस व्रत से सम्बंधित कथा को सुनती है तथा संतान की लम्बी आयु की कामना जीउतवाहन भगवान् से करती है

जीवितपुत्रिका व्रत की कथा:-

पुराणों में ऐसा वर्णित है की गन्धर्वों के राजकुमार जीउतवाहन बहुत ही उदार एवं परोपकारी थे। जीउतवाहन के पिता जब वृद्ध हो गयें तो उन्होंने अपना सारा राजपाट अपने पुत्र जीउतवाहन को सौप कर स्वयं जंगल में जाकर तपस्या करने लगे। मगर जीउतवाहन का मन राजपाट में नहीं लगा और वे पूरा राजपाट अपने भाईयों को सौप कर स्वयं पिता की सेवा में चले गये जहाँ उनकी भेट मलयवती नामक राजकन्या से होती है, और दोनों में प्रेम हो जाता है। एक दिन जीउतवाहन घूमते घूमते जंगल में काफी दूर चले गये जहाँ एक वृद्ध महिला विलाप कर रही थी। विलाप का कारण पूछने पर उसने बताया कि मैं नागवंशी स्त्री हूँ, मेरे पास एक ही पुत्र है पक्षीराज गरूड़ के क्रोध से बचने के लिए सभी नागों ने विचार विमर्श करके यह तय किया कि वो प्रति दिन उनके आहार के लिए एक नाग को भेज दिया करेगें, आज मेरे पुत्र की बारी है इसलिए मैं दुखी हूं और विलाप कर रही हूँ। जीउतवाहन को यह सुन कर अपार दुख हुआ और उन्होंने कहा कि डरो मत तुम्हारे पुत्र की जगह आज मैं जाऊँगा। इतना कह कर जीउतवाहन निश्चित स्थान की ओर चल पड़े। नियत समय पर गरूड़ आकर जीउतवाहन को नाग समझ कर अपने पंजे में दबा कर पहाड़ की ऊची चोटी पर जाकर बैठ जाते हैं, और जीउतवाहन के शरीर से मांस नोच कर खाने लगते हैं। इस असहनीय पीड़ा से जीउतवाहन के आंशु निकल जाते हैं और कराहने लगते हैं। यह देख कर गरूड़ को बहुत आश्चर्य होता है। और वह जीउतवाहन का परिचय पूछते हैं। जीउतवाहन ने सारा वृतांत कह सुनाया और नागों के ऊपर दया करने की याचना की। गरूड़ उनकी दया भावना से बहुत प्रभावित हुए और वरदान मागने के लिए कहा जीउतवाहन ने कहा कि यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो मुझे यह वर दीजिए कि आप आगे से किसी नाग की बलि नही लेगें और मृत नागों को जीवन प्रदान करें। गरूड़ ने कहा जैसी तुम्हारी इच्छा।इस प्रकार जीउतवाहन ने सभी नागों की रक्षा की।

जीवितपुत्रिका व्रत का महत्व:-

हमारे धार्मिक ग्रन्थों में ऐसा वर्णन मिलता है एक बार माता पार्वती और भगवान् शंकर कही जा रहे थे तभी माता पार्वती को कुछ स्त्रियाँ विलाप करते हुए दिखाई दी माता जी ने भगवान् शंकर से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि इन स्त्रियों के पुत्रों की मृत्यु हो गयी है जिस कारण यह सब रो रही है। यह सुन कर माता पार्वती बहुत दुखी हुई और इसका निवारण पूछा भगवान् शंकर ने बताया कि विधि के विधान को कोई नहीं बदल सकता किंतु यदि माताएं जीउतवाहन की पूजा पूरे विधि विधान से करती है तो उनके पुत्र के कष्टों का नाश अवश्य हो जाएगा। तब से ही पुत्र की रक्षा एवं उसके कष्टों के निवारण के लिए इस व्रत का पालन स्त्रियों द्वारा पूरे मनोयोग से किया जाता है।

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