“अजनबी”

Share

एक अजनबी से हुई ज़ब
आधी अधूरी मुलाकात।
उसके बाद न जाने कैसे
मुकम्मल हुए जज़्बात।।

फिर न हुआ किसी से इश्क
और ना हुई तलब किसी की।
मिल गया मुझे मेरे,
तमाम सवालों के जवाब।।

न तलाशा फिर किसी को,
न किसी का किया इंतजार।
एक अजनबी से ज़ब हुईं
आधी अधूरी सी मुलाकात।।

मेरी खयालों को अनहद कर गया।

वो अजनबी हद में रहकर, मुझे बेहद कर गया।
(द्वारा कविता प्रकाशन समूह)

लिटरेरी जनरल, सरिता कुमार , फ़रीदाबाद हरियाणा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!