“पूर्वांचल लाईफ” अश्वनी तिवारी
जौनपुर। 21 फरवरी को 25 वें अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर भोजपुरी अध्ययन केंद्र के शोध संवाद समूह की ओर से ‘मातृभाषा- महत्व और चुनौतियां’ विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन केंद्र के राहुल सभागार किया गया।परिचर्चा सत्र की अध्यक्षता महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो.सुरेंद्र प्रताप ने की तथा मुख्य अतिथि के रूप में ख्यात न्यूरोलॉजिस्ट प्रो.विजयनाथ मिश्र उपस्थित रहे। मुख्य वक्त्तव्य नीरजा माधव ने दिया। इस अवसर पर केंद्र की ओर से लोक कलाकार अष्टभुजा मिश्र को स्मृति चिन्ह व अंगवस्त्रम देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रो.सुरेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि मातृभाषा में बहुत शक्ति है तथा उसी के माध्यम से हम भाषा के मोर्चे पर बड़ी लड़ाई लड़ सकते हैं। ज्ञान परंपरा को बचाने के लिए हमें मातृभाषाएँ पढ़नी चाहिए। स्वागत वक्तव्य देते हुए केंद्र के समन्वयक प्रो.श्रीप्रकाश शुक्ल ने ज्ञान दीप्ति और संवेदनात्मक संगति केवल मातृभाषा में ही मिल सकती है। हमें पीढ़ियों से मिले ज्ञान को निरंतर बनाये रखना है तथा उसे रूखा भी नहीं होने देना है।
मुख्य अतिथि ख्यात न्यूरोलॉजिस्ट प्रो.विजयनाथ मिश्र ने कहा कि मातृभाषा हृदय की भाषा है। व्यक्ति के मौलिक भाव, उसके मौलिक विचार उसे उसकी अपनी मातृभाषा में ही आते हैं, उसके नवीन ज्ञान के स्रोत उसकी मातृभाषा से प्रस्फुटित होते हैं।मातृभाषा नवीन मार्ग दिखलाती है। मुख्य वक्ता के रूप में अपना वक्तव्य देते हुए वरिष्ठ कथाकार नीरजा माधव ने कहा संकटों पर बात करने भर से मातृभाषा की उन्नति नहीं हो सकती बल्कि हमें मातृभाषाओं को व्यवहार में लाना होगा। जरूरत है कि मातृभाषा को सुरक्षित और संरक्षित करते हुए व्यवहार में लाया जाए।
आईआईटी बीएचयू के रसायन अभियांत्रिकी विभाग में आचार्य प्रो. आर.एस. सिंह ने कहा कि भाषा को ज्ञान की विधा की तरह मानना एक गलत अवधारणा को जन्म देता और इसी के चलते हीनभावना की भावना आती है। इसी हीनभावना के चलते ज्ञान से भरे अध्येता भी अभिव्यक्ति के संकट जूझ रहे हैं। इस अवसर पर प्रो.सिंह ने अपनी कविताओं का पाठ भी किया
इस अवसर पर केंद्र की ओर से लोककलाकार अष्टभुजा मिश्र का लोककलाओं को बढ़ावा देने तथा इस दिशा में सराहनीय कार्य करने के लिए अंगवस्त्र और स्मृतिचिह्न देकर सम्मान किया गया। इस अवसर पर अष्टभुजा मिश्र ने कहा कि मातृभाषा महतारी की भाषा है जो बिना कहे कही जा सकती है और बिना सुने समझ में आ जाती है। हिंदी विभाग में आचार्य प्रो. प्रभाकर सिंह ने कहा कि मातृभाषा मन की भाषा होती है। मातृभाषा से जुड़ा व्यक्ति सदैव रचनात्मक होता है, जरूरत है कि मातृभाषा के प्रति कोई शर्म न रहे। हृदय का प्रकाश और बुद्धि की प्रखरता मातृभाषा के माध्यम से ही फैलती है।
छात्र प्रतिनिधि के रूप में बोलते हुए शोध छात्र अक्षत पाण्डेय कहा कि मातृभाषा हमारी पहचान है तथा हमारे मस्तिष्क की गति है। कार्यक्रम का संचालन केंद्र की शोधार्थी आर्यपुत्र दीपक ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन मनकामना शुक्ल ने किया। कार्यक्रम में केंद्र के संगीत शोधार्थी सुधीर गौतम ने बांसुरी पर कजरी, होली तथा एक कविता की प्रस्तुति दी, तबले पर संगत संगीत विभाग के शोधार्थी प्रेमचंद ने की। इस अवसर पर डॉ. प्रभात कुमार मिश्र, डॉ. महेंद्र कुशवाहा, डॉ. रविशंकर सोनकर, डॉ. विंध्याचल यादव, डॉ. सत्यप्रकाश सिंह, डॉ. नीलम तथा भारी संख्या में छात्र-छात्राओं की उपस्थिति रही।