गीत ग़ज़लों में कुछ बात कह लेंगे हम
इन हवाओं के विपरीत बह लेंगे हम
टूटने दे रहे धैर्य पूरी तरह
देखते हैं घुटन कितनी सह लेंगे हम
अपने पन के दिखावे से बेहतर है ये
पास अपने ठहर कर भी रह लेंगे हम
साथ सब छोड़ देंगे भँवर में मेरा
बीच मँझधार की ही पनह लेंगे हम
फ़ैसला मेरे हक़ में भी कर ज़िंदगी
एक दिन तुझसे भी तो बिरह लेंगे हम
वंदना
अहमदाबाद