पंकज सीबी मिश्रा/पत्रकार जौनपुर
पूर्वांचल लाईफ न्यूज : पिछले कुछ सालों में केजरीवाल की छवि में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला। उन्होंने दिल्ली को कोसने की गति इतनी तेज कर दी थी कि शराब घोटाले की आंच में तप कर पहले वो बेईमान बने और अब दिल्ली हार कर आम आदमी बन गए। पहले जहां वे सादगी की मिसाल पेश करते थे, वहीं मुख्यमंत्री बनने के बाद वे महंगे कपड़े, ब्रांडेड जैकेट और हाई-प्रोफाइल नेताओं जैसे लुक में दिखने लगे और शीश महल की भव्यता की चर्चा भी खूब रही। उनके कपड़ों और रहन-सहन में आए बदलाव को लेकर विपक्षी दलों ने अक्सर तंज कसा, खासकर महंगे आलीशान घर और सरकारी सुविधाओं के उपयोग को लेकर। चुनाव हारते ही केजरीवाल का “आम आदमी” अवतार वापस हुआ तो क्या फिर शुरू हुआ हाई वोल्टेज ड्रामा। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, जिन्हें आम आदमी की राजनीति का चेहरा माना जाता था, सत्ता में आने के बाद धीरे-धीरे एक अलग रूप में नजर आने लगे। लेकिन जैसे ही हालिया चुनावी हारे, उनके नेतृत्व पर सवाल खड़े हो रहे, वे फिर से अपने ओवरसाइज़ स्वेटर, ढीली पैंट और चप्पल के पुराने अंदाज में लौट आए और अब दिल्ली की जनता को अपनी गिरगिटीया रूप दिखाएंगे। लेकिन अब जब पंजाब में भी चुनावी हार की गूंज तेज हुई, तो अचानक उनकी आम आदमी वाली छवि दोबारा सामने आ गई। क्या यह सिर्फ एक संयोग है, या फिर जनता की सहानुभूति पाने के लिए पुराना प्रयोग ! केजरीवाल की राजनीति हमेशा से आम आदमी की छवि पर टिकी रही है। झाड़ू, मफलर और सादगी उनके शुरुआती राजनीतिक सफर का आधार रहे हैं। लेकिन सत्ता में आते ही उनके रहने का तरीका और निर्णय लेने की शैली बदल गई। अब जब चुनावी नतीजे उनके पक्ष में नहीं रहे, तो क्या यह एक बार फिर इमोशनल कार्ड खेलने की कोशिश है? या फिर वाकई वे अपनी जड़ों की ओर लौट रहे हैं ? भारतीय जनता अब पहले जैसी नहीं रही। वह नेताओं के लुक और दिखावे से ज्यादा उनके काम को महत्व देती है। ऐसे में अगर कोई नेता बार-बार अपनी छवि बदलता है, तो जनता को यह समझने में ज्यादा देर नहीं लगती कि यह सिर्फ चुनावी रणनीति है या असली बदलाव। अब देखना यह होगा कि क्या केजरीवाल का यह बदला हुआ रूप सिर्फ चुनावी हार तक सीमित रहता है या वे अपनी पुरानी छवि को पूरी तरह से बनाए रखते हैं। राजनीति में ड्रामा ज्यादा दिन तक नहीं चलता, जनता को असली काम और नीयत दिखती है।
व्यंग्य: खत्म टाटा, बाय – बाय…..
