पूर्वांचल लाईफ/पंकज कुमार मिश्रा
जौनपुर। गोमती नदी के किनारे बसा यह शहर अपने अंदर कई खूबियों, विशेषताओं और ऐतिहासिकता को समेटे हुए है।जैसे शाही पुल, जामा मस्जिद, शाही किला, अटाला मस्जिद, झझरी मस्जिद, जौनपुर की मूली और मक्का, जौनपुर की इमिरिती, माधोपट्टी नामक गाँव इत्यादि। इसी जिले के माधोपट्टी नामक गाँव ने सबसे ज्यादा आइएएस और पीसीएस अफसर दिए। हमें ऐसे शहर पर नाज है।गोमती नदी, किला, शाही पुल और अनेक मध्यकालीन स्मारकों को अपने में समेटे जौनपुर की एक पहचान है किन्तु आजादी के छियत्तर वर्ष बाद बाद भी विकास के नाम पर अन्य शहरों से तुलना करें तो यहां की बजबजाती गंदगी, बस अड्डे से लेकर जेसीज चौराहे और उसके चारों ओर के इलाकों में गंदे नालों और कूड़े के अंबार, गलियों में सड़ते पानी की बदबू, रेलवे स्टेशन पर बदबू करते कूड़े आने-जाने वालों का पीछा नहीं छोड़ती। साढ़े तीन लाख की आबादी वाले शहर जौनपुर में प्रतिदिन लगभग 98 टन कूड़ा निकलता है। इसके निस्तारण के लिए शहर से लगे कुल्हनामऊ में करोड़ों रुपये खर्चकर सालिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट बनाया गया किन्तु सतहरियां आज भी सबसे ज्यादा उपेक्षित क्षेत्र है जहाँ कूड़ा और डंप के मामले में प्लांट चालू होने के बाद भी शहर के कचरे का पूर्ण निस्तारण नहीं हुआ। कारण शहर की सफाई तो हुईं पर आस पास के लगे गाँवों की सफाई रोज नहीं हो पा रही है। शहर की सफाई के लिए करीब 600 कर्मचारी तैनात हैं। इसमें स्थायी 168, संविदा पर 72 और 360 आउटसोर्सिगिं के तहत नियुक्त हैं।इन सफाईकर्मियों को मोहल्लेवार तैनात किया गया, लेकिन गाँवो में तैनात सरकारी सफाई कर्मीओं की ओर से रोज सफाई नहीं किए जाने से गंदगी का अंबार लगा हुुुआ है। वह कभी सप्ताह भर के बाद तो कभी पखवारा भर के बाद सफाई करते हैं, जिससे गांव में जगह-जगह गंदगी का अंबार लगा रहता है। मोहल्लों में पग-पग पर कचरा बिखरा हुआ देखा जा सकता है। जिले के अधिकांश सफाई कर्मियों द्वारा अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं किए जाने से गांवों में गंदगी का अंबार लगा हुआ है। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा हैं कि ग्राम प्रधान व एडीओ पंचायत की कृपा से सफाईकर्मी घर बैठे वेतन प्राप्त कर रहे हैं। ग्रामीण बाजारों की नालियां जाम पड़ी हैं, इन गांवों के सार्वजनिक मार्गों पर गंदगी का ऐसा अंबार लगा हुआ है कि उस पर चलना ग्रामीणों के लिए कठिन हो गया है। विभाग के अधिकारी न तो ग्रामीण इलाकों में सफाई व्यवस्था का जायजा लेते हैं और ना ही शिकायतों पर कार्यवाही करते है। ग्राम प्रधान की खुली संलिप्तता से मौज उड़ाने वाले सफाईकर्मी जातिवाद की राजनीति से बस चट्टी चौराहों पर पान चबा रहें। इससे स्थिति बदतर होती जा रही है। स्कूलों आदि में गंदगी की भरमार है ग्राम प्रधान अपने निजी लाभ के लिए सफाई कर्मियों को खुली छूट देकर सरकारी धन का दुरूपयोग करा रहे हैं। विकास खंड का शायद ही कोई ऐसा गांव होगा, जहां के सफाईकर्मी हाथ में झाड़ू लेकर गांवों की सफाई करते नजर आएं। विधायक, सांसद अपनी राजनीति भी केवल जातिवादी मानसिकता और वोट के ध्रुवीकरण के लिए करते है। बढ़ते जातिवादीता के कारण ही तीन लोकसभा से परिपूर्ण यह जनपद आज सबसे उपेक्षित जनपद नजर आता है जहाँ की राजनैतिक व्यवस्था नें कामकाजी व्यवस्था को जकड़ रखा है।