कोशिश की मासिक काव्य गोष्ठी में कविताओं की गूँज, लोकार्पण और सम्मान का अनूठा संगम

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जौनपुर। साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था “कोशिश” की मासिक काव्य गोष्ठी रविवार को बाबू रामेश्वर प्रसाद सिंह सभागार, रासमंडल में सम्पन्न हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता ख्यात कवि गिरीश कुमार श्रीवास्तव ‘गिरीश’ ने की।

गोष्ठी का शुभारंभ कवि रामजीत मिश्र की ग्यारहवीं काव्य कृति “पहचान खोती ज़िंदगी” के लोकार्पण से हुआ। इसी क्रम में कोशिश परिवार के सदस्य कवि अनिल उपाध्याय के पुत्र डॉ. अनुरोध उपाध्याय के लखनऊ विश्वविद्यालय के विधि विभाग में सहायक आचार्य पद पर चयन पर संस्था की ओर से बधाई और शुभकामनाएँ दी गईं।

काव्य पाठ की शुरुआत कवि अमृत प्रकाश के शेर से हुई-
“मुझे छोटा समझती थी ये दुनिया/मेरे हाथों में जब करतब नहीं था।”
इसके बाद नंदलाल समीर ने लोकभाषा में समाज की सच्चाई को उकेरा-
“जहाँ रहय अमीर/वहीं बहय समीर/सच्चा साथी के सब मौका परस्त हौ।”

गोष्ठी में प्रस्तुत रचनाओं ने अलग-अलग रंग बिखेरे।

आशिक जौनपुरी रमेश सेठ का शेर “गर ये आँचल नहीं उड़ा तो क्या हवा न चली…” ने रोमांच भर दिया।

अंसार जौनपुरी का शेर “लिखा है वक्त के माथे पे जो कुछ पढ़ रहा हूँ मैं…” ने संवेदनाओं को गहराया।

डॉ. संजय सागर की नज़्म “उनकी याद आ गई, खुशी के फूल खिल गये” को भरपूर सराहना मिली।

राजेश पांडेय की रचना “हाँ, मैं ही कारण सत्ता हूँ” अध्यात्मिक रस से सराबोर रही।

अनिल उपाध्याय की क्षणिका ने सामाजिक विकृति पर तीखा व्यंग्य किया।

रामजीत मिश्र की कविता “काँटों से अगर मुझको भी हो जाती मोहब्बत…” ने श्रोताओं का मन जीत लिया।

जनार्दन प्रसाद अष्ठाना ‘पथिक’ का गीत “क्या कहूँ सब दुर्दशा की अब कहानी हो गई है” विरह का मार्मिक चित्रण था।

सभाजीत द्विवेदी प्रखर ने अपनी रचना “बहनों का सिंदूर लुटा था…” से देशप्रेम की भावना जगाई।

अशोक मिश्र की कविता “प्रेम जब बिलखता है…” ने लोकमन की पीड़ा को अभिव्यक्त किया।

अध्यक्षीय संबोधन में गिरीश कुमार ‘गिरीश’ ने काव्यपाठ की समीक्षात्मक प्रस्तुति देते हुए अपना शेर सुनाया-
“बहला रहे हैं खुद को अकेले में बैठकर/चूल्हे पे चढ़ी खाली पतीली सी ज़िंदगी।”

आयोजिका डॉ. विमला सिंह ने जीवन-दर्शन से परिपूर्ण अपनी कविता के पाठ से वातावरण को गहराई दी।

गोष्ठी में डॉ. ऐश्वर्या सिन्हा चित्रांश, रूपेश साथी, उषा सैनी, कमलेश कुमार और संजय सेठ सहित जेब्रा जौनपुर के अध्यक्ष की सक्रिय सहभागिता उल्लेखनीय रही।

संचालन अशोक मिश्र ने किया, जबकि आभार व्यक्त करते हुए डॉ. आर.एन. सिंह ने कोशिश के आगामी कार्यक्रमों पर प्रकाश डाला।

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