ब्राह्मण होना केवल जनेऊ पहन लेना नहीं है —
यह संकल्प है उस तेज का, जो अंधकार में दीपक बनता है।
यह व्रत है उस ज्ञान का, जो पीढ़ियों को मार्ग दिखाता है।
लेकिन आज की सच्चाई क्या है?
ब्राह्मण के युवा बच्चे धर्म से जुड़े हैं, यह अच्छी बात है।
वे मंदिर जाते हैं, भगवा धारण करते हैं, जय श्रीराम के उद्घोष करते हैं — यह उनकी आस्था है।
मगर क्या आस्था केवल नारों से पूरी होती है?
नहीं।
आस्था को अब ‘आत्मनिर्भरता’ से जोड़ने की ज़रूरत है।
युवा ब्राह्मण उठो!
वेदों का अध्ययन करो, लेकिन UPSC की किताबें भी पढ़ो।
गीता के श्लोक याद हों, तो कंप्यूटर लैंग्वेज भी आनी चाहिए।
शास्त्रों के साथ तकनीक में भी प्रवीण बनो।
धर्माचार्य बनो, पर डॉक्टर, वैज्ञानिक, प्रोफेसर और प्रशासक भी बनो।
मंदिर में घण्टा बजाओ, लेकिन देश की संसद में आवाज़ भी उठाओ।
ब्राह्मण का धर्म है नेतृत्व करना — लेकिन उसके लिए पहले खुद को तैयार करना होगा।
आज जरूरत है कि हम अपने बच्चों को केवल ‘संस्कार’ नहीं, ‘संघर्ष का संकल्प’ भी दें।
उन्हें सिर्फ पूजा करना नहीं सिखाएँ, बल्कि पढ़ना, सोचना और आगे बढ़ना भी सिखाएँ।
याद रखो —
यदि हम सिर्फ भक्ति करेंगे, तो औरों के अधीन रहेंगे।
यदि हम शिक्षा, रोजगार और कौशल नहीं अपनाएँगे, तो हमारे हाथों में सिर्फ माला रहेगी, पर भविष्य कोई और रचेगा।
हमारे पुरखे विद्वान थे, क्योंकि उन्होंने ज्ञान को चुना।
अब हमें भी वही राह पकड़नी होगी — पर नए युग के औजारों के साथ।
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एक नारा जो ब्राह्मण युवा को ऊर्जा दे:
“मंदिर में दीप जलाऊँ, पर जीवन में लक्ष्य भी तय करूँ।
ज्ञान मेरा आभूषण है, और कर्म मेरी पूजा।
मैं ब्राह्मण हूँ — सिर्फ नाम से नहीं, अपने काम से बनूँ।”
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अब समय है उठने का, पढ़ने का, बनने का।
ब्राह्मण समाज फिर तभी उठेगा, जब उसका युवा कलम, कंप्यूटर और कौशल से युक्त होगा।
जय ज्ञान। जय कर्म। जय ब्राह्मण!
अशोक दुबे
अधिवक्ता राष्ट्रीय अध्यक्ष अपना पूर्वांचल महासंघ