लेख_ क्यो नही खेलती बहू पहली होली ससुराल में?

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जबकि दामाद को पहली होली ससुराल में मनानी चाहिए, क्या है इसके पीछे की मान्यता?

जौनपुर/शाहगंज! हिन्दू धर्म से जुड़े त्योहारों के अनेक मान्यताएँ हैं अनेकों परम्पराएँ है, कुछ तो ऐसे है जिससे पारिवारिक समरसता प्राचीन काल से लेकर आजतक झलकती है ऐसी ही कुछ मान्यताएँ रंगों के त्योहार होली को लेकर है, होली में सभी एक ही रंग के नज़र आते हैं। क्या बुढ़े, क्या जवान, क्या नयी नवेली दूल्हन सभी रंगों में रंगे नज़र आते हैं। हर तरफ़ बस उल्लास ही उल्लास नज़र आता है, यह त्योहार सारी कटुता को भूल कर मिठास का संदेश देता है, मगर इस होली को लेकर कुछ मान्यताएँ हैं कुछ परम्पराएँ है जिस को लोग आज भी कड़ाई से पालन करते हैं,जैसे नई नवेली दूल्हन को पहली होली अपने ससुराल में नहीं खेलनी चाहिए। दुल्हे को अपनी पहली होली ससुराल में खेलनी चाहिए आदि आदि। इन्ही सब मान्यताओं को हम अपने इस लेख के माध्यम से अपने पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं।

नई नवेली बहू को क्यों नहीं खेलनी चाहिए पहली होली ससुराल में?

मान्यताओं के अनुसार जिस लड़की की नई नई शादी हुईं हो उसकी पहली होली ससुराल में नहीं बीतनी या खेलनी चाहिए ऐसा कहा जाता है कि यदि सास और बहु दोनों एक साथ होलिका दहन होतें हुए देखती है तो उनके रिश्तों में कड़वाहट पैदा हो जाती है। कुछ अन्य बातें भी होती है जैसे नई दुल्हन पहली बार अपने माता पिता को छोड़ कर आई रहती है जिस कारण वह उतनी सहज नहीं रह पाती है इस कारण वह पुरी खुशी के साथ इस त्योहार का आनंद नहीं ले पाएगी इस कारण भी यह परम्परा शायद शुरू की गई होगी। कुछ मान्यताओं के अनुसार यदि नई बहू अपनी पहली होली अपने पीहर में मनाती है तो दोनों परिवार के रिश्तों में मधुरता आती है। कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार गर्भवती स्त्री को भी अपनी पहली होली ससुराल में नहीं मनानी चाहिए। इससे उसके बच्चे का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है

दामाद को पहली होली ससुराल में क्यों मनानी या खेलनी चाहिए?

एक तरफ़ नई नवेली बहू को अपनी पहली होली ससुराल में मनाने से मनाही की गई है तो वही दूसरी तरफ दुल्हा के लिए अपनी पहली होली ससुराल में ही खेलने को कहा गया है। मान्यताओं के अनुसार यदि दामाद अपनी पहली होली अपने ससुराल में अपने सास ससुर तथा अन्य रिश्तेदारों के साथ मनाता या खेलता है तो सास ससुर तथा अन्य रिश्तेदारों से उसके संबंध मधुर हो जाते हैं। जीवन में कभी किसी प्रकार की कटुता नहीं आती है। यदि सही अर्थों में देखा जाए तो यह त्योहार आपसी मेल मिलाप भाई चारे का त्योहार है।

उपरोक्त दी गई सारी जानकारी प्रवचनों, स्थानीय मान्यताओं, लोक कथाओं, एवं बडे़ बुढो़ के अनुभवों पर आधारित है।

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