“तुष्टि दर्शन के कारण ही….!”

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पूर्वांचल लाइफ/अश्वनी तिवारी

भले प्रयास हो मन से पूरा…
या फिर हो…आधा और अधूरा..
इस जग में सभी चाहते…!
मिल जाए उनको…पूरा का पूरा…
पर शाश्वत नियम प्रकृति का है यह
मिलता नहीं यहाँ किसी को….!
कुछ भी…पूरा का पूरा…
मित्रों…. यह भी सच है कि….
पूरा पाने की अभिलाषा में ही…
गतिमान है यह दुनियावी मेला…
होकर वशीभूत इसके ही…
हुआ है मानव मन भीतर से मैला…
चलन में है यहाँ छीना-झपटी,
हथियाने को सब कुछ प्यारे…!
हर कोई है अन्दर से कपटी….
एक बात और कहूँ मैं मित्रों.….
मानव मन की…सचमुच….!
है कुछ अजीब सी दृष्टि….
जो…कभी नहीं होने देती…
उसमें भीतर से संतुष्टि….
मिला क्या उसको…?
क्या उसने पाया…..?
खुद से सवाल….!
हरपल करता है…हर व्यक्ति….
सब जाने हैं…सबको पता है …
हर मानव मन की यही नियति…
पर मित्रों…यह भी सच मानो…
सकल विश्व में केवल….!
मानव मन में ही होती है….
एक अद्भुत सी प्रवृत्ति…
प्रकृति-परिस्थिति दोनों से…!
झट समझौता कर लेने की वृत्ति…
शायद इसीलिए प्यारे….
करता नहीं वह कोई अफसोस…
मिल जाए कभी जो उसको…
आधा और अधूरा ही…
कर लेता है वह झट संतोष….
प्यारे मित्रों….!
विद्वानों ने दर्शन में…
इसी को कहा है “तुष्टि”….
ग़ौर करोगे तो पाओगे….!
इस “तुष्टि” दर्शन के कारण ही,
बन पड़ी है सुन्दर यह सृष्टि…
इस “तुष्टि” दर्शन के कारण ही,
बन पड़ी है सुन्दर यह सृष्टि…

रचनाकार….
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस उपायुक्त,लखनऊ

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