आज समाज में जिस रफ्तार से अपराध बढ़ रहे हैं, वह बेहद चिंताजनक है। खासतौर पर नाबालिगों की बढ़ती संलिप्तता ने न सिर्फ कानून-व्यवस्था को चुनौती दी है, बल्कि समाज के सामने एक नई विडंबना खड़ी कर दी है।
चौंकाने वाली बात यह है कि कई किशोर पहली बार अपराध में लिप्त होने के बाद भी सुधार के बजाय और अधिक खतरनाक बनकर जेल से बाहर लौटते हैं। इसका मुख्य कारण है जेलों का अपराधियों को सुधारने के बजाय उन्हें और गहराई से अपराध की दुनिया में धकेल देना।
जेलों में अपराधियों के बीच का हिंसात्मक माहौल, वहां मौजूद आपराधिक गिरोहों का दबाव और कई बार जेलकर्मियों की मिलीभगत, नए अपराधियों के लिए एक ऐसा जाल बुन देती है, जिससे निकलना बेहद कठिन हो जाता है। कई बार प्रताड़ना का स्तर इतना गंभीर होता है कि युवा कैदी आत्महत्या तक के लिए मजबूर हो जाते हैं।
अब समय आ गया है कि सरकार और न्यायिक प्रणाली इस गंभीर समस्या पर ठोस कदम उठाएं। नाबालिग अगर जघन्य अपराधों में शामिल पाए जाएं, तो उनके साथ भी वयस्कों की तरह सख्त कानूनी प्रक्रिया अपनाई जाए। साथ ही, जेलों को केवल दंड देने की नहीं, बल्कि सुधार और पुनर्वास की जगह बनाया जाए, ताकि अपराधी दोबारा समाज की मुख्यधारा से जुड़ सकें।
विचार करने की बात यह भी है कि आखिर किस सामाजिक या आर्थिक व्यवस्था के चलते हमारी युवा पीढ़ी का एक बड़ा हिस्सा अपराध की ओर बढ़ रहा है? यह प्रश्न केवल कानून-व्यवस्था का नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग के लिए आत्ममंथन का विषय है।
भविष्य की पीढ़ी को अपराध से बचाने के लिए अब केवल चर्चा नहीं, बल्कि ठोस नीतियों और सुधारों की जरूरत है—वरना बहुत देर हो जाएगी।