बसंत पंचमी का महापर्व : डॉक्टर दिलीप कुमार सिंह ज्योतिष शिरोमणि

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जौनपुर। इस वर्ष ज्योतिष और पंचांग की गणना में 2 फरवरी सुबह 9:15 से बसंत पंचमी की तिथि का प्रारंभ हो रहा है जो 3 फरवरी को सुबह 6:53 तक रहेगी। इस प्रकार वाग्देवी सरस्वती मां का यह त्यौहार थोड़ा सा भ्रम के बीच पड़ रहा हैं अगर उदया तिथि को देखा जाए तो 2 फरवरी को सूर्योदय के बाद यह तिथि लग रही है और 3 फरवरी को सूर्योदय के तुरंत बाद समाप्त हो रही है। यदि उदया तिथि को लिया जाए तो इसको 3 फरवरी को मनाना चाहिए, लेकिन अगर अवधि को लेकर देखा जाए तो इसका अधिकांश भाग 2 फरवरी को पड़ रहा है जिसके कारण अनेक लोग इसको 2 फरवरी को मनाना चाहते हैं, लेकिन हमारे मत के अनुसार तो उदया तिथि प्रामाणिक रूप से ऐसी तिथि है जिसके अनुसार बसंत पंचमी 3 फरवरी को मनाना चाहिए। वैसे तो आजकल चारों तरफ विद्वान लोगों और ज्योतिषी लोगों की बहार है जिसका जो मन में आए सो करे।

मध्य भारत जौनपुर प्रयागराज जहां से भारत का प्रमाणिक समय लिया जाता है वहां पर सूर्योदय दो और तीन फरवरी को 6:30 से 6:35 के बीच होता है के अनुसार भी बसंत पंचमी 3 फरवरी को पड़ रही है। अगर पूरे भारत की बात किया जाए तो इस समय भारत के पूर्वी भाग में सूर्योदय लगभग 5:45 पर हो जाता है और सूर्यास्त भारत के अंतिम पश्चिमी बिंदु पर 7:00 होता है। इस प्रकार समग्र भारत को मिलकर भी 3 फरवरी को ही बसंत पंचमी मनाया जाना चाहिए लेकिन अगर बसंत पंचमी का अधिकांश भाग 2 फरवरी को फरवरी की पंचमी तिथि का पड़ रहा है तो 2 फरवरी को भी बसंत पंचमी जो लोग मना रहे हैं। वह गलत और अनुचित नहीं है और तीन को जो मना रहे हैं वह भी उचित है।

बसंत पंचमी को विद्या बुद्धि और वाणी की देवी सरस्वती का दिन माना जाता है और संसार की समस्या विज्ञान टेक्नोलॉजी विद्या बुद्धि सरस्वती मां के अधीन और आशीर्वाद से संभव होती है। विश्व कवि कालिदास उन्हीं के आशीर्वाद से विश्व विख्यात हुए थे देवताओं को जिस तरह सरस्वती जी ने कुंभकरण से बचाया वह भी सब जानते हैं हनुमान जी को जब रावण ने पूंछ में कपड़े बांधकर पूंछ जलाने की अनुमति दिया तब भी मां सरस्वती ने ही हनुमान जी की रक्षा की और हनुमान जी ने खुद कहा उल्टा होहि कहा हनुमाना भईं सहाय शारद मैं जाना। इसीलिए सरस्वती मां को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है जो सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा की शक्ति मानी जाती हैं, धन तो खत्म हो जाता है लेकिन ज्ञान विद्या बुद्धि तकनीक कभी समाप्त नहीं होती है। इसलिए धनवान और राजा अपने क्षेत्र में जबकि विद्वान बुद्धिमान ज्ञानी समस्त संसार में पूजे जाते हैं।

बसंत पंचमी के दिन पूजा का विधि विधान यह है कि स्नान करके स्वच्छ पीले कपड़े पहने या हल्के रंग के कपड़े धारण करें। और मन वचन कर्म से सरस्वती देवी का ध्यान करें और पीला वस्त्र फल फूल पीली मिठाई और फूल माला के द्वारा सरस्वती मां की पूजा उनका चित्र मूर्ति रखकर करें। पूजा करते समय मुंह उत्तर या पूर्व होना चाहिए वैसे 2 फरवरी में यदि पूजा पाठ करना चाहे तो सुबह 8:00 बजे से लेकर 1:00 बजे के बीच पूजा पाठ आराम से कर सकते हैं। बसंत पंचमी के दिन से ही मौसम बदल जाता है शीत ऋतु धीरे-धीरे कम हो जाती है और गर्मी बढ़ने लगती है। सर्दी गर्मी दोनों धीरे-धीरे बराबर हो जाता है बसंत का इसी दिन से प्रारंभ होने से वसंत ऋतु भी प्रारंभ मानी जाती है। इस समय अद्भुत संयोग है कि ज्यादातर पेड़ पौधे फूलों से लदे रहते हैं और फूल अधिकतर पीले या हल्के पीले हल्के सुनहरे रंग के होते हैं। विधि विधान से पूजा पाठ करने के बाद अपनी पुस्तकों को भी ध्यान से पढ़ना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति महान विद्वान ज्ञानी या अपने विषय का पारंगत व्यक्ति और विश्व विख्यात वक्ता बन जाता है।

वैदिक काव्य और धर्म ग्रंथो में देवी सरस्वती जी के दिव्य और भव्य स्वरूप का वर्णन किया गया है जिसमें उनके रंग को कुंद और इंद्र के समान और धवल तुषार के समान माना गया है जो श्वेत वस्त्रों से अपनी आभा को बिखेर रही हैं और ब्रह्मा विष्णु शिव के साथ सभी देवी देवताओं द्वारा वंदनीय हैं। वह शुभ्र वरदान देने वाली है और संसार के हर एक ओर छोर और कण कण- में उनका निवास माना जाता है। जो बीणा और पुस्तक को धारण करती हैं और उनकी वीणा से संगीत के सभी स्वर निकलते हैं वह हमारे भय और जड़ता को दूर करती है। हाथ में माला और जिनका आसन श्वेत कमल है इस विद्या बुद्धि की महान देवी के द्वारा सभी की रक्षा करने की कामना की गई है, इसलिए इस दिन व्यक्ति को निष्पाप होकर देवी सरस्वती की पूजा करते हुए अपने अध्ययन और ज्ञानार्जन पर और देवी सरस्वती की महिमा पर अपना समय अवश्य देना चाहिए।

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