मानस कोविद डॉ. मदन मोहन मिश्र के मुखारबिंद से बही ज्ञान, भक्ति व वैराग्य की अविरल गंगा

Share

संवाददाता “पंकज जायसवाल”

जौनपुर।शीतला चौकियां धाम में चल रहे पांच दिवसीय श्रीराम कथा के दूसरे दिन काशी से पधारे मानस कोविद डॉ.मदन मोहन मिश्र के मुखारबिंद से ज्ञान, भक्ति व वैराग्य की अविरल गंगा प्रवाहित हुई।मानस कोविद ने नवधा भक्ति का मार्मिक प्रसंग सुनाकर भगवत्प्रेमियों व श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
उन्होंने शबरी को भक्ति की पराकाष्ठा बताया। कहा कि यदि हमारे हृदय में मां शबरी जैसी निश्चल व निष्काम भक्ति का भाव होगा तो ईश्वर हमें एक न एक दिन जरूर दर्शन देंगे। उन्होंने कहा कि मनुष्य के जीवन में भक्ति की शुरुआत सत्संग से ही होती है। सत्संग से ही मानव में विवेक जाग्रत होता है। मानस मर्मज्ञ ने कहा कि सत्संग ईश्वर की कृपा से ही सुलभ होता है। कहा कि शबरी ने भक्ति की जो मिसाल पेश की वह किसी के भी हृदय में प्रेमा भक्ति का संचार करने में सर्वथा सक्षम है, इसमें लेशमात्र भी संदेह नहीं है। कहा कि प्रभु को जाति-पांति, अमीरी-गरीबी, कुल, धर्म, बड़ाई एवं चतुराई इन सबसे परे मनुष्य सबसे प्रिय है। नव में से किसी भी एक प्रकार की भक्ति वाला मनुष्य भगवान को अति प्रिय है।

पं. अखिलेश चंद्र पाठक ने अयोध्याकंड के कथा प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि जब देवासुर संग्राम हुआ था तब राजा दशरथ देवों की तरफ से युद्ध लड़ रहे थे ये संग्राम देवों और असुर शंबासुर के बीच हो रहा था। इस युद्ध में राजा दशरथ की सारथी कैकेई बनी थीं। तब युद्ध में राजा दशरथ शस्त्र लगने की वजह से घायल हो थे। उनके प्राणों की रक्षा केकई ने की थी। राजा दशरथ ने कैकेई से खुश होकर दो वरदान मांगने को कहा था।
कैकेई के वर उस महान कार्य के निमित्त बने जो प्रभु श्रीराम को रावण के वध के रूप में किया। उन्होंने कहा कि भगवान की लीला के पीछे संपूर्ण सृष्टि का कल्याण निहित होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!