इशारे से ही सब समझा गया है
तमाशा करने वाला छा गया है
अभी उम्मीद का दीपक जलाया
हवा का तेज झोंका आ गया है
करूँ हर बात पर क्यों जी हुज़ूरी
हमें इनकार करना आ गया है
गिनाता ऐब मेरा ख़ूब है वो
किसी का साथ लगता पा गया है
अकेलापन बहुत अच्छा है साथी
सभी से जी बहुत उकता गया है
वंदना “अहमदाबाद„