“किसी का साथ “ग़ज़ल”

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इशारे से ही सब समझा गया है
तमाशा करने वाला छा गया है

अभी उम्मीद का दीपक जलाया
हवा का तेज झोंका आ गया है

करूँ हर बात पर क्यों जी हुज़ूरी
हमें इनकार करना आ गया है

गिनाता ऐब मेरा ख़ूब है वो
किसी का साथ लगता पा गया है

अकेलापन बहुत अच्छा है साथी
सभी से जी बहुत उकता गया है

वंदना “अहमदाबाद„

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