भगवान गौतम बुद्ध का जीवन और मृत्यु दोनों ही अद्भुत था उनका जन्म 483 ईसा पूर्व में और मृत्यु अर्थात महापरिनिर्वाण 563 ईसा पूर्व में माना जाता है।भगवान गौतम बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ था गौतम बुद्ध के जन्म के पहले ही बड़े-बड़े ऋषि मुनियों के द्वारा यह भविष्यवाणी की जा चुकी थी कि भगवान बुद्ध या तो सर्वश्रेष्ठ सन्यासी या तो चक्रवर्ती सम्राट होंगे कुछ विद्वान उनका जन्म ईसा पूर्व 567 भी मानते हैं शाक्य वंश जो भगवान श्री राम का इच्छ्वाकु वश है में हिमालय की तलहटी में लुंबिनी नेपाल देश में गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था और उनके पिता का नाम शुद्धोधन और माता का नाम माया देवी था जो जन्म के कुछ दिन बाद ही स्वर्गवासी हो गई और पालन पोषण विमाता मा प्रजापति गौतमी द्वारा किया गया था, उनका एकमात्र पुत्र राहुल का जिसका अर्थ बंधन होता है।
ब्राह्मणों की भविष्यवाणी के अनुसार उन्हें सन्यासी बनने से रोकने के लिए हर संभव प्रयास किए गए विलासिता पूर्ण जीवन दिया गया उच्च कोटि की शिक्षा शस्त्र और शास्त्र की दी गई और सभी में पूरी तरह पारंगत थे उनके बराबरी करने वाला कोई नहीं था बहुत जल्दी है एक अपूर्व सुंदरी और सर्वगुण संपन्न राजपुत्री यशोधरा से उनका विवाह कर दिया गया फिर भी जो होनी था वही हुआ उनको एक बीमार व्यक्ति एक वृद्ध व्यक्ति और एक मृत व्यक्ति महल के बाहर मिले और इससे उनका जीवन बदल गया जब उनके सारथी चन्न या छंदक ने यह बताया की हर व्यक्ति जरा जीर्णता और मृत्यु का शिकार होता है उन्होंने जीवन मृत्यु और बुढ़ापा संबंधित प्रश्नों और मानवता को पीड़ा से मुक्त करने के लिए एक रात में संन्यास लेकर राजभवन छोड़ दिया पुत्र पत्नी महल में रह गए।
अपने लंबे घने सुंदर रेशमी बाल काटकर सन्यासी हो गए इसके बाद में परम ज्ञान की खोज में हर प्रकार के साधु संत सन्यासी ज्ञानी विज्ञानी से मिले और उन्होंने काफी कुछ सीख भी लेकिन उनकी जिज्ञासा शांत नहीं हुए और वह आगे बढ़ते गए आलार उद्रक के बाद उन्होंने पांच साथियों के बाद महा भयंकर तपस्या किया अंत में उनकी हड्डियां कंकाल में बदल गई वह जीवित ही मृत संन्यासी प्रतीत होने लगे तभी सुजाता नाम की एक धन कुबेर कन्या ने उन्हें वृक्ष देवता समझकर स्वयं की बनाई खीर अर्पित किया जिसे उन्होंने बड़े प्रेम से खाया यह देखकर उनके पांच सन्यासी भाग खड़े हुए और सोचा कि यह तो पतित हो चुके हैं।
एक रात जब वे जा रहे थे तब नाचने गाने वाले लोगों से सीखा की बीणा के तार अधिक मत खींचे वरना वे टूट जाएंगे और वीणा के तार ढीले मत करो वरना वह नहीं बजेंगे यही मध्य मार्ग उनके ज्ञान का आधार बन गया इसके बाद उन्होंने परम संकल्प के साथ ज्ञान या मृत्यु समझ कर नारायण नदी के किनारे बोधि वृक्ष के नीचे अखंड ध्यान लगाया और प्रण किया कि जब तक उन्हें ज्ञान प्राप्त नहीं होगा तब तकवे नहीं उठेंगे चाहे उनकी मृत्यु हो जाए इस तरह छह दिन छह रात समाज में लीन रहे और सातवें दिन उन्होंने वैशाख माह की परम पवित्र पूर्णिमा के दिन प्रकाश पुंज से भरा हुआ अखंड ज्ञान प्राप्त किया और वह सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध या भगवान बुद्ध कह गए।
इस प्रकार 35 वर्ष की आयु में 7 वर्षों की घनघोर तपस्या के बाद ही बुद्धत्व प्राप्त होने के कारण वे शाक्य मुनि भी कह गए फिर उनके तेज से प्रभावित होकर उनके भागे हुए पांच साथी उनके शिष्य बन गए इसके बाद में अपनी मृत्यु तक घूम-घूम कर संपूर्ण भारत में उपदेश देते रहे और उन्होंने एक सूत्री ज्ञान का उपदेश दिया कि इस जीवन में दुख ही सत्य है और लोभ ही पाप का मूल है इसके बाद उन्होंने अपना एक संघ बनाया और चार आर्य सत्य का प्रतिपादन किया उनके साथ केवल एक कटोरा एक वस्त्र एक सुई पानी की एक छलनी और एक चाकू साथ होता था उनके तेज और ज्ञान तथा सात्विक जीवन से प्रभावित होकर बड़े-बड़े राजा महाराजा सम्राट देश-विदेश के लोग और सामान्य जनता ने तेजी से उनका मार्ग स्वीकार किया।
उन्होंने साफ कहा कि मैं कोई धर्म स्थापित नहीं कर रहा हूं बल्कि सनातन धर्म में आए हुए विकृतियों को दूर कर रहा हूं एक बार एक महिला अपने मृतक पुत्र को लेकर उसे जीवित करने भगवान बुद्ध के पैर पैर पड़ गई तो उन्होंने कहा ठीक है तुम केवल एक चावल का दाना ऐसे घर से लो जहां कभी मृत्यु नहीं हुई हो और उस स्त्री को सत्य समझ में आ गया ऐसा कहा जाता है कि 80 वर्ष की आयु में पावा पुरी में उन्होंने सूअर का मांस खाया कुछ लोग उसे कुंभी की सब्जी भी कहते हैं और परिनिर्माण को प्राप्त हुए मृत्यु के पूर्व भी उन्होंने यही कहा सब कुछ अनित्य है इसलिए सत्य की शरण में जाओ उनके सिद्धांतों को दूर-दूर तक उनके शिष्यों द्वारा फैलाया गया जिसमें सम्राट अशोक और कनिष्क जैसे लोग प्रमुख थे जल्दी ही भगवान बुद्ध का पथ पूरी दुनिया में फैल गया और उसको बौद्ध धर्म के नाम से जोड़ दिया गया परंतु वास्तव में सनातन धर्म का ही एक रूप है क्योंकि भगवान बुद्ध स्वयं की भगवान श्री राम के एक अवतार हैं और अपने उच्चतम गुना और अखंड कर्म के कारण उन्हें विश्व का प्रकाश माना जाता है।
“डॉक्टर दिलीप कुमार सिंह”