भाई की संपत्ति में बराबरी का अधिकार
रिपोर्ट – पिंकी राजगुरु
नई दिल्ली। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए महिलाओं को उनके संवैधानिक अधिकारों की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। अब बहनों को भी अपने भाइयों की पैतृक संपत्ति में समान अधिकार मिलेगा। इस फैसले ने ना सिर्फ कानून के पन्नों में एक नया अध्याय जोड़ा है, बल्कि भारत के पारंपरिक सामाजिक ढांचे को भी चुनौती दी है।
यह निर्णय वर्षों से चली आ रही उस असमानता पर सीधा प्रहार करता है जिसमें बेटों को संपत्ति का स्वामी माना जाता था और बेटियों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता था। अब सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि संपत्ति पर बहन और भाई दोनों का बराबरी से अधिकार है, और किसी को भी सिर्फ लिंग के आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता।
महिलाओं के अधिकारों को मिला नया संबल
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में दो टूक कहा कि भारतीय संविधान के तहत सभी नागरिक समान हैं चाहे वे पुरुष हों या महिला। संपत्ति के अधिकार में भी अब यही समानता लागू होगी। यह फैसला महिला सशक्तिकरण की दिशा में मील का पत्थर माना जा रहा है, जो पारंपरिक रूढ़ियों को तोड़ने में अहम भूमिका निभाएगा।
पारिवारिक विवादों पर लगेगा विराम
भारत में संपत्ति विवाद, विशेष रूप से भाई-बहन के बीच, अक्सर परिवारों में तनाव और दूरी की वजह बनते हैं। बेटियों को कई बार सिर्फ दहेज या शादी के वक्त उपहारों तक सीमित कर दिया जाता था। इस कानूनी पहल से अब ऐसे भेदभावपूर्ण व्यवहार पर रोक लगेगी और परिवारों में न्याय और संतुलन की भावना विकसित होगी।
सामाजिक बदलाव की ओर एक बड़ा क़दम
यह फैसला उन लाखों महिलाओं के लिए उम्मीद की किरण है जो वर्षों से अपने अधिकारों से वंचित रहीं। पिछले कुछ दशकों में महिलाओं के अधिकारों को लेकर कानूनों में कई सकारात्मक बदलाव हुए हैं, लेकिन यह फैसला एक निर्णायक मोड़ साबित होगा।
अब समय आ गया है कि समाज भी इस संवैधानिक समानता को दिल से स्वीकार करे और बेटियों को भी वह सम्मान और अधिकार दे जो उन्हें जन्म से ही मिलना चाहिए।
न्यायालय का यह फैसला सिर्फ एक कानूनी घोषणा नहीं, बल्कि एक सामाजिक क्रांति की शुरुआत है – जहां बेटी अब सिर्फ ‘पराई’ नहीं, बल्कि ‘हकदार’ भी है।