थानागद्दी के ग्राम सभा नाऊपुर के नवीन परती खाते की जमीन से जुड़ा था मामला
“केराकत संवाददाता”
जौनपुर/केराकत – कहते हैं कि पद और प्रतिष्ठा के गुरुर में इंसान कभी-कभी कुछ ऐसे कदम उठा लेता है जिस पर वह बाद में मुड़कर अपने ही फैसले को बदलने के लिए बाध्य हो जाता है कुछ ऐसा ही इन दिनों पूर्व उपजिलाधिकारी केराकत का देखने को मिला। जिनसे उप लोकायुक्त ने जवाब क्या मांगा कि वह अपने फैसले को ही बदलती हुई नज़र आने लगी हैं। दरअसल, मामला केराकत तहसील क्षेत्र के नाऊपुर ग्राम पंचायत से जुड़ा होना बताया जा रहा है। जहां की ग्राम प्रधान श्रीमती संजू देवी ने अपर मुख्य सचिव राजस्व उत्तर प्रदेश शासन लखनऊ व प्रदेश के श्रम में एवं सेवायोजन, सम्यक विभाग के मंत्री अनिल राजभर को पत्र भेज कर शिकायत करते हुए ग्राम सभा की नवीन परती खाते की जमीन को प्रबंध तंत्र द्वारा अवैध तरीके से अशासकीय विद्यालय कृषक इंटर कॉलेज थानागद्दी के नाम दर्शाये जाने के साथ-साथ पूर्व उपजिलाधिकारी के आदेश दिनांक 09.06.2023 को निरस्त किए जाने का अनुरोध किया। मामला सुर्खियों में आने के बाद जहां शासन प्रशासन ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया था वही पूर्व उपजिलाधिकारी केराकत नेहा मिश्रा की मुश्किलें भी बढ़ने लगी थी। मजे की बात है कि ग्राम सभा नाऊपुर के खसरा संख्या 51, 57, 59 एवं 75 को यह बताकर कि उपरोक्त गाटा विद्यालय के नाम सुरक्षित है झूठी जानकारी देकर गुमराह करते हुए कागजों में भी हेराफेरी की गई जबकि नाऊपुर और जिस विद्यालय के नाम हेरा फेरी की गई है दोनों अलग-अलग ग्राम सभा में स्थित है ऐसे में अपने आप में ही इस पूरे प्रकरण और आदेश में साजिश की बू आ रही थी, लेकिन पूर्व उपजिलाधिकारी केराकत ने भी इसमें जरा भी दिलचस्पी न ली और पूरी तरह से एक पक्ष की बात करते हुए अपना आदेश पारित कर दिया था। जिससे व्यथित होकर महिला ग्राम प्रधान ने पूर्व उपजिलाधिकारी नेहा मिश्रा की साजिशों के विरुद्ध शासन प्रशासन का दरवाजा खटखटाया था। अंतोगत्वा मामला बिगड़ता देख और प्रशासन की भृकुटी तनती हुई भांप कर 22 फरवरी को अपने आदेश पत्र में खतौनी फसली वर्ष 14 28-33 के खाता संख्या 01150 में अंकित आराजी नंबर 51/.06400 हेक्टेयर, 57/.01370हेक्टेयर,59/10380हेक्टेयर व75/10840हे. के बाबत पारित आदेश दिनांक 09.06.2023 का क्रियान्वयन अग्रिम आदेश तक स्थगित तक कर दिया गया है।जिसकी चर्चा पूरे क्षेत्र में इन दिनों जोरों पर है कि आखिरकार ऐसा क्या हुआ कि पूर्व उपजिलाधिकारी को अपने ही आदेश को पलटने के लिए विवश होना पड़ा है।