सजदा

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हाथ फैलाकर किसी दर पे न जाया जाये
ख़ुद को बेग़ैरत होने से बचाया जाये
डूबने का डर तो सिखता है ज़माना
सबको तैरने का हुनर भी सिखाया जाये।

तंगी ए हालात आज हैं, कल नहीं
क्यों न तंगहाली में भी मुस्कुराया जाये
जिनको नाज़ था कल अपनी अदाओं पर
आज उनको भी एक आईना दिखाया जाये।

हर तरफ बिखरा है नाउम्मीदी का अंधेरा
उम्मीद का एक दिया शिद्दत से जलाया जाये
कब तलक किसी का इन्तज़ार करेंगे
अब अकेले ही पहला क़दम बढ़ाया जाये।

कवि संतोष कुमार झा, नई दिल्ली

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