“मिलावटखोरी” सेलिब्रेशन केक को कहें ना, “केक से कैंसर का खतरा”

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जौनपुर ! आजकल जन्मदिन, वर्षगाठ, विवाह और समारोहों में केक काटने का चलन ट्रेंड में है। यह महज फैशन और शोबाजी है कि जब भी हम कोई ख़ुशी या उत्सव मनाते है तों सबसे पहला काम केक काटने का करते है। सबसे सोचनीय विषय यह कि इस समय मार्केट में उपलब्ध अधिकतर केक खतरनाक केमिकल वाली क्रीमयुक्त केक है जिनसे कैंसर का खतरा है। जब आप उसे खाएंगे तो वह सीधा मुंह में अंदर के सतह पर जाएगी आपको कुछ महसूस नहीं होगा किन्तु हानिकारक रसायन तेजी से मुंह के नाजुक त्वचा को नुकसान पहुँचाते है। अगर आप शुद्ध दूध से बनी हुई क्रीम केक खाएंगे तो उसमें आपको थोड़ा चिकनाहट सा महसूस होगा जैसे आप कुछ घी जैसा पदार्थ खा रहे हैं वह तुरंत अंदर तो जाएगा ही लेकिन आपके मुंह में एक घी जैसा एहसास देगा। आज के बाजार में 90% जगह पर केमिकल वाला केक उपलब्ध है। मिलावटी केक की पहचान सरल नहीं है। जनपद के पत्रकार और विज्ञान शोधछात्र पंकज सीबी मिश्रा बताते है कि आजकल लोगों में एक नया फैशन चला है और वह फैशन है बाजार से रसायन युक्त केक काटने का। पटियाला में सैकरीन से बने केक को खाने से एक बच्चे की मौत एवं हांगकांग, सिंगापुर तथा मालदीव में एमडीएच तथा एवरेस्ट मसालों में कैंसर उत्पन्न करने वाले प्रतिबंधित एथिलीन ऑक्साइड मिलने से लगाए गए प्रतिबंध के बाद भारत सरकार भी भी सचेत हुईं है! पहले के समय में भारत में केक काटने की परंपरा किसी एक बर्थडे पर होती थी पर अब लोग बच्चे पैदा होने के हर महीने पर एक-एक काटते हैं शादी का फंक्शन हो तो केक काटता है एंगेजमेंट हो तो केक काटता है, एनिवर्सरी हो तो केक काटता है। भारत जैसे देश में जहां पर सामान्य जन जीवन वाली आबादी ज्यादा है। इस आबादी की सबसे बड़ी खासियत यह होती है कि यह किसी भी काम को करने के पीछे उसके लॉजिक को नहीं सोचते बस देखा देखी भेड़चाल में शामिल हो जायेंगे। अगर टीवी सीरियल में दिखाया गया है, फिल्म में दिखाया गया है तो जरूर यह कोई अच्छी चीज होगी और यही से प्रचलन शुरू हो जाता है। छोटे छोटे से शहर में कम से कम 100 से ज्यादा छोटी-छोटी बेकरी है जहां पर हमेशा ही ताजा केक उपलब्ध रहता है अब सोचिए कि क्योंकि इतनी खपत है तभी तो ताजा केक लगातार बनता जा रहा है।

पहले के समय में जो केक बनाए जाते थे वह मैदा, तेल, दूध, एग आदि डालकर बनाए जाते थे और यह सारी चीज मिक्स करके इन्हें बैक किया जाता था उसके बाद बारी आती थी दूध से निकले हुए क्रीम को किसी ठंडा बर्तन में रखकर तब तक फेटा जाता था जब तक कि वह अपने साइज से चार गुना ना हो जाए और इसे ही व्हिप्ड क्रीम कहा जाता था। लेकिन जब बकरी में देखा जाता है कि यहां पर एक 5 किलो का कट्टा खोला जाता है और उसे काटकर उसमे से एक पाउडर निकलते हैं जिसे केक प्रीमिक्स के नाम से जाना जाता है और इस पाउडर में पानी मिलाया जाता है और फिर इसे बेक करने के लिए रख देते हैं बिना किसी झंझट के मिनट में रुई जैसा सॉफ्ट केक बनाकर तैयार हो जाता है लेकिन इस केक को इतना सॉफ्ट बनाने के लिए इस प्रीमिक्स में कई तरीके के कैमिकल मिलाए जाते हैं कुछ तो केमिकल ऐसे होते हैं जिनको खाना आपके लिए काफी ज्यादा घातक से हो सकता है। केक बनने के लिए जो क्रीम इस्तेमाल होता है वह भी रासायनिक होता है, इस क्रीम को सीधा-सीधा मिक्सर ग्राइंडर में डाला जाता है, 4 सेकंड के लिए घुमाया और बढ़िया व्हिप्ड क्रीम बनकर निकल गया यकीन माने इस व्हिप्ड क्रीम में चीनी मिलाने की भी जरूरत नहीं थी। क्योंकि इस केमिकल के द्वारा मीठा किया गया होता है और फिर झट से 15 मिनट के अंदर में एक अच्छा सा केक बनाकर तैयार हो जाता है। इसमें बहुत सारे आर्टिफिशियल फ्लेवर मिले थे फूड स्टेबलाइजर जिसे कीटनाशक भी समझा जा सकता है मिले हुए थे साथ ही ऐसे केमिकल मिले थे जो खाने को काफी ज्यादा सॉफ्ट बनाते हैं और कई दिन तक खराब होने से बचाते है। व्हिप्ड क्रीम के बारे में भी कुछ ऐसा ही था इसे देखने के बाद पता चलता है कि केक के नाम पर हम केक नहीं बल्कि केमिकल खा रहे हैं तभी यह के कितने सस्ते और इतनी आसानी से हर जगह उपलब्ध हो जाते हैं। बच्चों का बर्थडे हो या बड़ों की कोई पार्टी हर जगह पर यह केक उपलब्ध है। पर इसे खान और अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ करना यह हमारे और आपके हाथ में ही है। केक काटना बुरा नहीं है लेकिन कोशिश यह कीजिए कि आप घर पर बनी या अच्छी बेकरी से या किसी ऑथेंटिक शॉप से ही केक खरीदें जो की प्रीमिक्स का इस्तेमाल नहीं करते बल्कि अपने यहां ही केक मिक्स बनाकर उसे बेचते हैं। ऐसे केक का उपयोग हो जहाँ मार्केट में उपलब्ध केमिकल वाली क्रीम का इस्तेमाल न करके शुद्ध दूध वाली क्रीम का इस्तेमाल करते हैं।

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