ग़ज़ल

Share

डूब जाएँ या पार अच्छे से
इस भँवर से उबार अच्छे से

तुम जिसे चाहना उसे देना
मेरे हिस्से का प्यार अच्छे से

तू तो दुनिया को जीत लेता है
अब के अपने से हार अच्छे से

सौ तरह के अभावों में कहता
ज़िंदगी भी गुज़ार अच्छे से

वक़्त की चोट, चोट होती है
हम ने खायी है मार अच्छे से

सुन के आवाज़ वो चला आये
मौन होकर पुकार अच्छे से

रूठ जाती हैं ये लकीरें भी
फिर से उन को सँवार अच्छे से

ज़ख़्म को वो कुरेदेगा फिर से
अपना है बार-बार अच्छे से

मौत के बाद ‘वंदना’ का भी
नाम होगा शुमार अच्छे से

वंदना
अहमदाबाद

17/05/2024

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!