डूब जाएँ या पार अच्छे से
इस भँवर से उबार अच्छे से
तुम जिसे चाहना उसे देना
मेरे हिस्से का प्यार अच्छे से
तू तो दुनिया को जीत लेता है
अब के अपने से हार अच्छे से
सौ तरह के अभावों में कहता
ज़िंदगी भी गुज़ार अच्छे से
वक़्त की चोट, चोट होती है
हम ने खायी है मार अच्छे से
सुन के आवाज़ वो चला आये
मौन होकर पुकार अच्छे से
रूठ जाती हैं ये लकीरें भी
फिर से उन को सँवार अच्छे से
ज़ख़्म को वो कुरेदेगा फिर से
अपना है बार-बार अच्छे से
मौत के बाद ‘वंदना’ का भी
नाम होगा शुमार अच्छे से
वंदना
अहमदाबाद
17/05/2024