पंकज सीबी मिश्रा/पूर्वांचल लाईफ
वाराणसी (पंकज सीबी मिश्रा) : प्रसिद्ध कथावाचक संत मुरारी बापू काशी में सिगरा स्थित रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में राम कथा कर रहे थे । कथा शुरू होने के पूर्व मुरारी बापू काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचे थे और बाबा विश्वनाथ का विधिवत पूजन अर्चन किया। यह पहली बार नहीं है जब मुरारी बापू का काशी में प्रबल विरोध हो रहा है। हजारों लोग सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ खूब खरी खोटी भी सुना रहे । विद्वान ट्रोल आर्मी के निशाने पर रहने वाले संत मुरारी बापू के लिए विवाद बढ़ा किन्तु इसका लाभ उन मुर्ख ट्रोल आर्मी को हुआ नहीं। बताते चलें कि अभी कल ही इटावा में पिछडी जाति के कथावाचक का अपमान हुआ जिसे लेकर सपा राजनीतिक रोटी सेंकने में लग गया जबकि सूत्रों के मुताबिक पूरा मामला आसनाई औऱ सनातन अपमान से जुड़ा कुछ औऱ ही है। आपको बता दें बीते 11 जून को मुरारी बापू की धर्मपत्नी का देहांत हो गया इसके ठीक 3 दिन बाद वे काशी में आकर राम कथा सुना रहे हैं, विद्वान ट्रोल आर्मी के अनुसार ऐसा करना या तो परम विरक्ति की भावना के कारण है या आयोजकों से एडवांस ले लेने के कारण है पर फिलहाल काशी के संतों और विद्वानों का कहना है कि हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार पत्नी की मृत्यु के बाद यह समय सूतक काल का माना जाता है। मुरारी बापू पर लिखी गई मेरी टिप्पणी / आलेख को लेकर विभिन्न मत है। जहां तक सूतक की बात है ,अनेक समुदायों में तीन दिन का ही सूतक माना जाता है। यह मैं पहले भी कह चुका हूं। आखिर मोरारी बापू की कथा का काशी के संतों ने क्यों किया विरोध !
वाराणसी में कुछ बुद्धजीवी पत्रकार औऱ समाजसेवियों के लिए यह निजी खुन्नस औऱ अवसर की बात हो गई । मुरारी बापू की प्रतिभा की बात मैंने पहले भी कही है और मेरी आपत्ति सूतक पर नहीं ,मुख्यतः लोक यात्रा को बाधित करने के प्रयास पर है और सर्वाधिक आपत्ति किसी संत को अपमानित करने से है । संत तो संत हैं किसी धर्म जाति सम्प्रदाय का हो ,किसी समय भावुकता में अगर कुछ कह भी दिया हो तो उनकी ऐसी कोई मान्यता नहीं है और स्पष्ट रूप से यह बात वह मुरारी बापू से अपने लंबे संबंध के आधार पर कह रहे हैं। विगत 11 जून को मुरारी बापू के पत्नी का हुआ है निधन, सूतक काल में कथा सुनाने और मंदिर में जाने का लग रहा आरोप तो फिर सूतक का निवारण त्रिरात्रि भी है । सूतक काल में मंदिर जाना,दर्शन पूजन तथा अन्य धार्मिक कार्य नहीं किया जा सकता पर त्रिरात्रि के पश्चात यह तो मान्य है । काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन पूजन के दौरान पत्रकारों ने मुरारी बापू से इसी संदर्भ में कई सवाल किए। तो मुरारी बापू का कहना था कि यह वैष्णो संत की उस शाखा से आते हैं जहां इसका कोई अर्थ नहीं है। उनके यहां यह प्राचीन परंपरा भी है, इसलिए दर्शन पूजन और राम कथा कर सकते हैं भगवान के भजन में यह सब नहीं देखना चाहिए। सोशल मिडिया के अनुसार गंगा महासभा और अखिल भारतीय संत समिति के महासचिव जितेंद्रनंद सरस्वती ने मुरारी बापू की कथा का विरोध करते हुए कहा है कि यह कार्य धर्म विरुद्ध है। वह सूतक काल में है तो आखिर कैसे मंदिर पहुंच गए और राम कथा करने का क्यों नाटक कर रहे हैं। उन्होंने प्राचीन धर्म ग्रंथो का उदाहरण देते हुए भी अपनी बात को पुष्ट किया। काशी के कई अन्य संतों और ज्योतिष के जानकारों ने भी मुरारी बापू के इस कृत्य का घोर विरोध किया है। सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने सनातन विरोधी तो कुछ लोग धन के लिए कथा करने का कथित आरोप भी लगा रहे हैं। इन सब बातों के बीच कुछ लोग मुरारी बापू के समर्थन में भी उतर आए हैं और उनका कहना है कि राम कथा ही हो रही। इसलिए इसमें किसी तरह का संशय या इस तरह की बात करना ही अनुचित है। बताते चलें कि एक ओर कथा चल रही है तो दूसरी ओर काशी के संत महात्मा और ज्योतिष की जानकारी रखने वाले लोग लगातार मुरारी बापू के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं और विरोध को व्यापक जन समर्थन भी मिलता दिख रहा है। स्वामी रामदेव नें बल देकर कहा है कि मुरारी बापू हृदय से संत हैं और वीतराग हैं ।उनको लेकर भ्रांति नहीं होनी चाहिए। स्वामी जी को प्रमाण मानकर मैं इस चर्चा को अपने स्तर पर यहीं समाप्त करता हूं, समाप्त मानता हूं। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद और स्वामीनारायण संप्रदाय को मुरारी बापू से जो भी द्वेष दुर्भाव हो ,वह उनका निजी राग द्वेष है ।उसमें मेरी या हम लोगों की कोई भी रुचि न थी, न है।