संकलन – पंकज सीबी मिश्रा/पत्रकार एवं व्यंग्यकार
पैकट में नया माल , मुझे टोली याद है।
लड़खड़ाती हुई चाल, मुझे खोली याद है।।
बदला नहीं धमाल , मुझे बोली याद है।
अब भी वो फटेहाल , मुझे होली याद है।।
गालों का मजा ले गई वो गुझिया खिला के
उसने मला गुलाल, मुझे होली याद है।।
जिनको सफेद जुल्फें छुपाने की फिक्र थी
उनके भूरे हुए बाल, मुझे होली याद है।।
जब रंग घोल फेंका था सलहज ने शर्ट पे
कितने उठे सवाल , मुझे होली याद है।।
चेहरे पर हाथ फेर कर रंगा था अलकतरा
दिन भर रहा बवाल मुझे होली याद है।।
नाचे भैया पहन के भौजी का घाघरा ।
दारू का था कमाल , मुझे होली याद है।।
पीकर के भांग बस, वही कीचड़ में सो गए।
अपना था बुरा हाल , मुझे होली याद है।।
यौवन के मजे ले गए बूढ़ऊ बगल वाले।
भौजी शर्म से लाल , मुझे होली याद है।।
कहने लगी मुझे तेरी मेहबूबा फिर से वो ,
यूं फिर हुआ कमाल, मुझे होली याद है।।
धोती में बांध कर कोई पिचकारी चला गया,
बनियान बना रूमाल ,मुझे होली याद है।।