विश्व हिंदू महासंघ द्वारा ब्रम्हलीन महंत अवैद्य नाथ जी महराज की 11वीं पुण्यतिथि पर आयोजित साप्ताहिक कार्यक्रम के दौरान “स्वरांजलि” कार्यक्रम का आयोजन

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विश्व हिंदू महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष भिखारी प्रजापति ने एक महत्वपूर्ण घोषणा करते हुए कहा कि 12 से 18 सितंबर तक, दोनों संतों के व्यक्तित्व और कृतित्व को जन-जन तक पहुंचाने के लिए पूरे प्रदेश में एक विशेष अभियान चलाया जाएगा। यह अभियान केवल एक श्रद्धांजलि नहीं है, बल्कि एक ऐसा प्रयास है जो समाज में इन संतों द्वारा स्थापित मूल्यों, जैसे कि सामाजिक समरसता, शिक्षा और राष्ट्रवाद को पुनः जागृत करने का लक्ष्य रखता है। यह आयोजन एक संकेत है कि गोरक्षपीठ की विरासत को केवल धार्मिक सीमा तक सीमित नहीं रखा जाएगा, बल्कि उसे सामाजिक और राजनीतिक चेतना के एक सशक्त माध्यम के रूप में भी प्रचारित किया जाएगा।

संवाद सूत्र: डॉ. आर.बी. चौधरी
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)। बीते दिनों गोरखपुर स्थित गोरखनाथ मंदिर परिसर का काशी मुक्ता मंच श्रद्धा और संगीत की अद्भुत त्रिवेणी का साक्षी बना। यह अवसर था विश्व हिंदू महासंघ के सांस्कृतिक प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित ‘स्वरांजलि’ कार्यक्रम का, जहाँ युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज को संगीत के माध्यम से भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इस कार्यक्रम ने न केवल दोनों संतों के योगदान को याद किया, बल्कि गोरक्षपीठ की उस गौरवशाली परंपरा को भी रेखांकित किया, जिसने धर्म, समाज और राष्ट्र सेवा के क्षेत्र में एक अद्वितीय छाप छोड़ी है।

कार्यक्रम के दौरान, गोरखनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ जी सहित योगी मिथिलेश नाथ जी और योगी रामनाथ जी जैसे कई गणमान्य व्यक्तियों ने अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सत्यानंद गिरी ने कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में कहा कि गोरक्षपीठ ने हमेशा राष्ट्रधर्म को सर्वोपरि माना है, और महंत दिग्विजयनाथ व महंत अवेद्यनाथ जी ने इसी आदर्श को अपने जीवन में चरितार्थ किया। उन्होंने दोनों संतों को ‘राष्ट्र-ऋषि’ की संज्ञा देते हुए कहा कि उनका जीवन दर्शन आज भी समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

इस अवसर पर, विश्व हिंदू महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष भिखारी प्रजापति ने एक महत्वपूर्ण घोषणा करते हुए कहा कि 12 से 18 सितंबर तक, दोनों संतों के व्यक्तित्व और कृतित्व को जन-जन तक पहुंचाने के लिए पूरे प्रदेश में एक विशेष अभियान चलाया जाएगा। यह अभियान केवल एक श्रद्धांजलि नहीं है, बल्कि एक ऐसा प्रयास है जो समाज में इन संतों द्वारा स्थापित मूल्यों, जैसे कि सामाजिक समरसता, शिक्षा और राष्ट्रवाद को पुनः जागृत करने का लक्ष्य रखता है। यह आयोजन एक संकेत है कि गोरक्षपीठ की विरासत को केवल धार्मिक सीमा तक सीमित नहीं रखा जाएगा, बल्कि उसे सामाजिक और राजनीतिक चेतना के एक सशक्त माध्यम के रूप में भी प्रचारित किया जाएगा।

गोरक्षपीठ धर्म, समाज और राजनीति का एक महान संगम है। यह समझना आवश्यक है कि गोरक्षपीठ मात्र एक आध्यात्मिक केंद्र नहीं है, बल्कि इसका एक गहरा सामाजिक और राजनीतिक इतिहास भी रहा है। गोरक्षपीठ की यह परंपरा ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी से शुरू हुई, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्होंने न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और शैक्षणिक आंदोलनों का भी नेतृत्व किया। उन्हीं के अथक प्रयासों का परिणाम है कि गोरखपुर में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद जैसी संस्थाएं स्थापित हुईं, जिसने उत्तर भारत में शिक्षा की नींव रखी।

महंत दिग्विजयनाथ के शिष्य और उत्तराधिकारी, राष्ट्रसंत महंत अवेद्यनाथ जी ने इस विरासत को और भी आगे बढ़ाया। उन्होंने रामजन्मभूमि आंदोलन में एक प्रमुख भूमिका निभाई और हिंदू समाज को संगठित करने के लिए अथक प्रयास किए। उनका जीवन गो-संरक्षण, सामाजिक समरसता और शिक्षा के प्रसार को समर्पित था। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मठ-मंदिरों को केवल पूजा-पाठ का केंद्र नहीं, बल्कि समाज सेवा और जन-कल्याण का माध्यम भी बनना चाहिए।

आज, गोरक्षपीठ के वर्तमान पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ जी, जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हैं, अपने दोनों गुरुओं की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। गोरक्षपीठ का यह इतिहास बताता है कि इसकी परंपरा में धर्म, आध्यात्म, राष्ट्रधर्म और समाजसेवा का एक अद्वितीय मिश्रण है। “स्वरांजलि” जैसे कार्यक्रम इसी मिश्रण को प्रदर्शित करते हैं और आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश देते हैं कि धर्म का वास्तविक अर्थ केवल पूजा करना नहीं, बल्कि राष्ट्र और समाज की सेवा करना भी है।

विश्व हिंदू महासंघ, जिसकी स्थापना गोरक्षपीठाधीश्वर द्वारा की गई थी, इस मिशन को आगे बढ़ाने वाला एक महत्वपूर्ण संगठन है। इस संगठन का उद्देश्य हिंदू समाज को संगठित करना और उनकी धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान को सशक्त बनाना है। ऐसे आयोजनों के माध्यम से, यह संगठन न केवल अपनी जड़ों को मजबूत करता है, बल्कि अपनी विचारधारा को भी व्यापक जनसमूह तक पहुंचाता है। भिखारी प्रजापति द्वारा घोषित राज्यव्यापी अभियान इसी रणनीति का हिस्सा है।

संक्षेप में, विश्व हिंदू महासंघ सांस्कृतिक प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. राकेश श्रीवास्तव के संयोजकत्व में युगपुरुष दिग्विजयनाथ जी व राष्ट्रसंत अवेद्यनाथ जी को स्वरांजलि के माध्यम से मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ जी, योगी मिथिलेश नाथ जी, योगी रामनाथ जी, योगी रुद्रनाथ जी, श्री हरि नारायण महाराज, द्वारिका तिवारी, वीरेंद्र सिंह इत्यादि लोगों ने श्रद्धा सुमन समर्पित किए। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सत्यानंद गिरी रहे। गोरखनाथ मंदिर परिसर स्थित काशी मुक्ता मंच पर कार्यक्रम हेतु गोरक्षपीठाधीश्वर पूज्य महाराज जी के प्रति आयोजकों ने आभार व्यक्त किया।

इस अवसर पर, भजन कीर्तन के इस कार्यक्रम में प्रदेश अध्यक्ष भिखारी प्रजापति ने कहा कि 12 सितंबर से 18 सितंबर तक, प्रदेश के कोने-कोने में उक्त द्वय संतों के व्यक्तित्व व कृतित्व को पहुंचाया जाएगा। जिला अध्यक्ष ई. राजेश्वरी प्रसाद विश्वकर्मा, महानगर अध्यक्ष सत्येंद्र सिंह, सैनिक कल्याण प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष विनोद कुमार त्रिपाठी, संभाग प्रभारी डॉ. कमलेश शाही, मंडल प्रभारी बृजेश तिवारी, प्रदेश उपाध्यक्ष दिग्विजय किशोर शाही, अखंड प्रताप सिंह, श्रीमती संतोष मिश्र, डॉ. गिरीश चंद्र द्विवेदी, राकेश नाथ तिवारी, गोविंद कुशवाहा, बृज बिहारी दुबे, जयप्रकाश मिश्र, भारत भूषण मल्ल, रामानंद रावत, आनंद चंद्र द्विवेदी, डॉ. नितिन मिश्र, रंजीत दुबे, दीपक शुक्ल, दिनेश चतुर्वेदी, सोनू गुप्त, संजय चौहान, सपना श्रीवास्तव, मीरा दुबे, आशा शर्मा, डॉ. वी.के. मल्ल, आशीष राज गुप्त इत्यादि ने व्यवस्था संभाली।

गोरखपुर में आयोजित यह ‘स्वरांजलि’ कार्यक्रम केवल दो महान संतों को दी गई एक श्रद्धांजलि मात्र नहीं था। यह गोरक्षपीठ की समृद्ध परंपरा, उसके सामाजिक और राजनीतिक दर्शन तथा हिंदू समाज को संगठित करने की उसकी प्रतिबद्धता का एक सशक्त प्रदर्शन था। महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ द्वारा स्थापित सिद्धांतों को आज भी प्रासंगिक बनाकर, यह आयोजन एक नए दौर के जन जागरण की शुरुआत का प्रतीक है, जहाँ धर्म और राष्ट्र एक दूसरे के पूरक हैं।

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