जौनपुर। संविधान के अनुच्छेद 341 में धर्म आधारित प्रतिबंध समाप्त करने की मांग को लेकर राष्ट्रीय ओलमा काउंसिल ने शनिवार को प्रधानमंत्री को संबोधित एक ज्ञापन जिलाधिकारी को सौंपा। संगठन का कहना है कि 10 अगस्त 1950 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार ने एक विशेष अध्यादेश लाकर अनुसूचित जातियों के आरक्षण में धर्म के आधार पर पाबंदी लगा दी थी, जो संविधान की मूल भावना के विपरीत है।
काउंसिल ने आरोप लगाया कि इस प्रावधान के चलते दलित मुस्लिम और दलित ईसाई समुदाय की कई जातियां, जो पारंपरिक रूप से हिन्दू दलित जातियों के समान पेशों से जुड़ी हैं, आज भी शिक्षा, सरकारी नौकरियों, राजनीति और अन्य क्षेत्रों में आरक्षण से वंचित हैं। ज्ञापन में उल्लेख किया गया कि 1936 से 1950 तक सभी धर्मों के दलित समुदाय आरक्षण के दायरे में थे, लेकिन 1950 के बाद यह अधिकार धार्मिक आधार पर छीन लिया गया।
संगठन ने इसे “असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक और सांप्रदायिक” बताते हुए तत्काल प्रभाव से समाप्त करने की मांग की। साथ ही बताया कि 1956 में सिखों और 1990 में बौद्ध धर्मावलंबियों को अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल कर लिया गया, लेकिन दलित मुसलमान और ईसाई अब भी बाहर हैं।
ज्ञापन सौंपने के दौरान उपराष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुक्तदा हुसैन खैरी, हस्सान अहमद कासमी, अंसार अहमद, मौलाना मतीउद्दीन, मोहम्मद सहाबुद्दीन, मोहम्मद फारूक, फिरोज खान, सलीम खान, सिकंदर, शाह आलम, सलाम दादा, मोवज्जम अली, अब्दुल्लाह सिद्दीकी, मसूद सिद्दीकी, सना उल्लाह, अब्दुल रहमान, हाफिज एकरार, इरशाद अहमद, मोहम्मद हासिम, कमालुद्दीन, सुल्तान अली, हाफिज ताहा, हाफिज अयाज, हक्कू भाई, असहाब, जय प्रकाश यादव समेत बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।