“नश्वर शरीर”डॉ. मोनिका रघुवंशी की कलम से

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मिट्टी के संसार में क्या लेना, क्या जाना है,
नश्वर शरीर यहीं छूट जाना है,
साँसों की डोर थम जाएगी,
मरने के बाद पुरानी यादें रह जाएँगी।

मन से पश्चाताप करो, मोह माया में न पाप करो,
कर्म साफ़ करो, सभी को माफ़ करो,
मिट्टी के संसार में क्या लेना, क्या जाना है,
नश्वर शरीर यहीं छूट जाना है।

कलयुग की तप्ती रेत ने सबको जलाया है,
दुखों से पार सिर्फ विरला संतों ने पाया है,
मिट्टी के संसार में क्या लेना, क्या जाना है,
नश्वर शरीर यहीं छूट जाना है।

सृष्टि ने हमें बनाया है, भार जीवन का कंधों पर आया है,
ना इसका तिरस्कार करो, भवसागर पार करो,
मिट्टी के संसार में क्या लेना, क्या जाना है,
नश्वर शरीर यहीं छूट जाना है।

साँसों की डोर रुकती नहीं, दुखों ने सबको तड़पाया है,
इन कष्टों से पार भी मोह माया है,
मिट्टी के संसार में क्या लेना, क्या जाना है,
नश्वर शरीर यहीं छूट जाना है।

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