ग्रहण एक महत्वपूर्ण भौगोलिक और आकाशीय घटना है।
सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण सौरमंडल की अत्यंत महत्वपूर्ण घटनाएं हैं इन घटनाओं से न केवल धरती पर बल्कि पूरे सौरमंडल पर कम या अधिक प्रभाव पड़ता है और सभी जंतु और वनस्पतियों पर इसका यहां तक की समुद्र पर भी सीधा असर पड़ता है और ज्वार भाटा आते हैं सूर्य और चंद्र ग्रहण ग्रहण एक अत्यंत महत्वपूर्ण भौगोलिक और आकाशीय घटना है जिस पर दिन और रात में सूर्य के प्रकाश और चंद्रमा की किरणों में अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रभावी परिवर्तन होते हैं समुद्र और स्थल पर जंतु और वनस्पतियों पर पशु और पक्षियों पर इसका सीधा प्रभाव देखा जाता है।
कैसे होता है चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण।
सभी ग्रह और उपग्रह आवंतर ग्रह और उल्का पिंड तथा हर एक सौरमंडल का पिंड धूमकेतु सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करता है और सूर्य खुद भी आकाशगंगा की परिक्रमा 26 करोड़ साल में करता है और आकाशगंगा आकाशगंगाओं के समूह की परिक्रमा करता है और सभी आकाशगंगाएं परम कृष्ण नक्षत्र अर्थात सुपर ब्लैक होल की परिक्रमा करती हैं और सारे सुपर ब्लैक होल व्हाइट सुपर ब्लैक होल या परम श्वेत कृष्ण नक्षत्र की परिक्रमा करते हैं जब पृथ्वी परिक्रमा करते हुए सूर्य और चंद्रमा के बीच आती है तब चंद्र ग्रहण पड़ता है और पृथ्वी काफी बड़ी है चंद्रमा बहुत छोटा है इसलिए चंद्र ग्रहण बार-बार पड़ता है और अधिक मात्रा में पूर्ण चंद्र ग्रहण लगता है जबकि सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा घूमते घूमते सूर्य और पृथ्वी के बीच आता है चंद्रमा पृथ्वी से 81 गुना अधिक छोटा है इसलिए सूर्य ग्रहण कम पड़ता है चंद्रमा का छाया क्षेत्र भी छोटा है इसलिए पूर्ण सूर्य ग्रहण अत्यंत दुर्लभ स्थिति है।
विज्ञान के अनुसार पूर्ण सूर्य ग्रहण बहुत छोटे भूभाग पर लगता है और यह 1 मिनट से लेकर अधिक से अधिक 11 मिनट तक का हो सकता है अभी तक इतिहास का सबसे बड़ा सूर्य ग्रहण कुरुक्षेत्र के मैदान में महाभारत के युद्ध के समय लगा था जबकि पूरे 15 मिनट का सूर्य ग्रहण सूर्य के डूबते समय लगा था जिसका ज्ञान भगवान श्री कृष्ण को था उन्होंने अर्जुन को सावधान कर दिया था और जैसे ही सूर्य ग्रहण सूर्य के डूबने से थोड़ा पहले समाप्त हुआ वैसे ही अर्जुन ने अपने दिव्य अस्त्र से जयद्रथ को मार गिराया था।
ग्रहण और राहु केतु की वास्तविकता राव और केतु नवग्रह में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं ऐसा भारत में प्रचलित है कि राहु चंद्रमा को और सूर्य को केतु निगल जाता है ऐसा इसलिए है कि अमृत पीते समय सूर्य और चंद्रमा ने भगवान विष्णु को इशारे में इनके राक्षस होने का भेद बता दिया था इसलिए यह लोग विष्णु भगवान के द्वारा सर काटे जाने पर सिर का भाग राहु और धड़ का भाग केतु हो गया था वह बारी-बारी से सूर्य और चंद्र को निगल जाते हैं वैज्ञानिक रूप से और भारतीय ज्योतिष ग्रंथों में इसको स्पष्ट करते हुए कहा गया है की केतु और राहु ग्रह नहीं है बल्कि यह छाया ग्रह आभासी ग्रह हैं सूर्य और चंद्रमा के मिलन बिंदु को काटने वाले स्थान पर राहु और केतु विद्यमान रहते हैं जिसका अर्थ यह होता है कि पृथ्वी और चंद्रमा के सूर्य के सापेक्ष के मिलन बिंदु को ही राहु और केतु स्थान दिया गया है जो पूर्ण वैज्ञानिक है इन स्थानों पर आते ही ग्रहण पड़ता है जिसको सामान्य जनता के लिए राहु और केतु द्वारा सूर्य और चंद्रमा को निगलना कहा गया है।
कब लग रहा है सूर्य ग्रहण
इस वर्ष 2024 का पहला सूर्य ग्रहण 8 अक्टूबर 2024 को लग रहा है जो भारत में दिखाई नहीं देगा इसलिए उसका सीधा असर भारत पर नहीं पड़ेगा फिर भी इसका अप्रत्यक्ष असर भारत पर और सबसे अधिक असर अमेरिका और खाड़ी देशों तथा यूरोप पर पड़ेगा इसका सबसे अधिक छाया क्षेत्र अमेरिका में है और प्रशांत महासागर में है इसलिए इस बार संयुक्त राज्य अमेरिका कनाडा और मेक्सिको के लोग इस लंबी अवधि तक लगने वाले सूर्य ग्रहण का बहुत सुंदर ढंग से अवलोकन कर पाएंगे जो चार से पांच मिनट तक का होगा यह बहुत लंबा सूर्य ग्रहण माना जाता है और ऐसा सूर्य ग्रहण बहुत कम लगता है इसको देखने की इतनी अधिक जिज्ञासा है कि अमेरिका में 13000 करोड़ से अधिक का व्यापार अभी से बुक हो चुका है लोग टेलिस्कोप द्वारा हवाई जहाज के द्वारा और अनेक साधनों के द्वारा सूर्य ग्रहण देखने की प्रतीक्षा में हैं।
सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण में सावधानी।
सूर्य ग्रहण कभी भी खुली आंख से नहीं देखना चाहिए जबकि चंद्र ग्रहण को आराम से आंखों से देखा जा सकता है क्योंकि सूर्य तो आसमान में चमकता रहता है केवल चंद्रमा की छाया उसकी रुकती है इसलिए सूर्य ग्रहण देखने से आंख बहुत जल्दी खराब होती है और आंख की रेटिना जल जाती है क्योंकि सूर्य ग्रहण के समय सूर्य में भयानक तोर ज्वाला है और सुर विस्फोट होते हैं और लाखों किलोमीटर लंबी ज्वाला हैं और पराबैंगनी किरणें तथा ब्रह्मांडीय किरणें निकलती हैं इसके अलावा भी अनेक दुष्प्रभाव शरीर पर होते हैं पुरुष नपुंसक हो सकता है औरतें बांझ हो सकती हैं इसलिए इसको उचित सावधानी से जल में या काले कांच के दर्पण से या दो से तीन एक्सरे प्लेट लगाकर ही देखना चाहिए और अब तो इसे देखने की आवश्यकता भी नहीं है क्योंकि टेलीविजन और इंटरनेट पर इसका सीधा प्रसारण होता है सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण लगने से समाप्त होने तक जहां तक संभव हो भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए अगर बालक वृद्ध या गर्भवती महिला है तो उसको तुलसी के पत्ते को दूध पानी या रस में डालकर उसका पान किया जा सकता है वैसे तो ग्रहण के दौरान प्रत्येक खाने-पीने की वस्तु में तुलसी का पत्ता डाल देना चाहिए यह सूर्य के और चंद्र के किरणों को और रेडिएशन को महत्वपूर्ण ढंग से सोख लेता है और उसका प्रभाव समाप्त कर देता है।
ग्रहण का प्रभाव वास्तविक होता है।
जो लोग यह सोचते हैं कि ग्रहण पर भारत में अंधविश्वास फैला है वह पूरी तरह से झूठे हैं ग्रहण के दौरान छुरी चाकू लोहे की बनी और तेज धार की चीजों का का प्रयोग करना लेटे रहना लेट कर भोजन करना बहुत ही घातक है इसका प्रभाव पशु पक्षियों पर भी पड़ता है जब ग्रहण के दौरान पूरी तरह सन्नाटा छा जाता है पक्षी आसमान में नहीं उड़ाते जानवर भोजन नहीं करते और शांत पड़े रहते हैं इसलिए मनुष्यों पर इसका सबसे अधिक प्रभाव पडना निश्चित रहता है सूर्य और चंद्र ग्रहण पर बड़ी-बड़ी लहरें उठती हैं और ज्वार भाटा आते हैं जो दिखता है कि सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण का प्रभाव वास्तविक है इस समय शरीर के विभिन्न भागों में महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं।
इस वर्ष के सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण का प्रभाव देश विदेश में कैसा रहेगा।
नए भारतीय वर्ष के ठीक 1 दिन पहले लगने वाले सूर्य ग्रहण का प्रभाव चंद्र ग्रहण से मिलकर बहुत ही विध्वंसक और घातक होगा कालयुक्त संवत्सर के कारण और देवी दुर्गा के घोड़े पर सवार होने के कारण वैसे भी पूरी दुनिया में भीषण युद्ध लड़ाई मार काट हिंसा दंगे फसाद शीत युद्ध घातक हथियारों का प्रयोग जैवरासायनिक परमाणु अस्त्र-शस्त्रों के प्रयोग की आशंका बढ़ गई है और इस कालखंड में पड़ने वाला सूर्य ग्रहण इन सब में आग में घी डालने जैसा काम करेगा मनुष्य में और महिलाओं में क्रोध की मात्रा उन्माद की मात्रा अधिक बढ़ जाएगी लोग अपना नियंत्रण खोने लगेंगे और एक महीने में तमाम भीषण चक्रवात समुद्री तूफान गर्मी में भयानक वृद्धि लड़ाई और मार काट आतंकवाद उग्रवाद में तीव्रता अपराधों में भीषण वृद्धि ज्वालामुखी विस्फोट और भीषण भूकंप आने निश्चित हैं विशेष रूप से 7 अप्रैल से लेकर 25 मई तक इसका भयानक असर होगा जल थल नभ में अत्यंत ही भयानक और महत्वपूर्ण परिवर्तन दृष्टिगोचर होंगे और दुर्घटनाओं में भी वृद्धि होगी इसके प्रभाव से दो सुनामी लहरों और दो बवंडर और एक महा चक्रवात का आना निश्चित है इसके प्रभाव से कई महत्वपूर्ण अंतरिक्ष अभियान असफल होंगे।