(जब रूक्कमणी और कृष्ण बधे परिणय सूत्र में दृश्यमंचन से भक्त हुए आनंदित)
जौनपुर संवाददाता। संसार का यह दस्तूर है कि वह दुनियावालो पर भरोसा तो करता है लेकिन वह धोखा ही पाता है जबकि भरोसेमंद केवल ही केवल भगवान ही हैं। यह कथा के दौरान पं0 प्रवीण पाण्डेय जी महाराज( काशी) ने जौनपुर के खलीलपुर गाँव में रामविलास सिंह समाजसेवी के आवास पर चल रही कथा के षष्ठम दिवस पर व्यक्त की। उक्त कथा का आयोजन स्व0 जितेंद्र सिंह के प्रथम पुण्यतिथि पर रखी गई थी जिससे श्रीमदभागवत सुनाकर अपने पितरो को सुख और पितृलोक से उन्हें अपनी संतति को आशिर्वाद प्रदान किया जा सके। आज की मुख्य कथा का अंश में रासलीला और कृष्ण व रूक्कमणी विवाह पर केन्द्रित रहा। कृष्ण की रासलीला को जनसाधारण के लोग अज्ञानतावश गलत अर्थ लगा लेते हैं जबकि यह रासलीला काम पर विजय की लीला है।भगवान अपने भक्त गोपियो के संग उनकी इच्छा से नृत्य कर रास रचाने हैं। गोपिया कोई और नही वह कृष्ण के अनन्य भक्त ऋषि और मुनि हैं। आज भी वृन्दावन में निधिवन हैं जहा कृष्ण अपने इन्ही भक्तो के संग नित्य रात्रि में रासलीला करते हैं।भगवान शंकर भी गोपी का वेष धारणकर नृत्य करते हैं इसीलिए उनका एक नाम गोपेश्वर है। आगे कथा में बताया गया कि भगवान अपने भक्तो की इच्छा को पूरा करने के लिए हर सम्भव मदद करते हैं। रूक्कमणी ने कृष्ण के पास एक पत्र लिखा कि भुवन सुन्दर मै आपसे विवाह करना चाहती हू क्योकि रूक्कमणी के घर के लोग शिशुपाल से विवाह करना चाहते हैं जिससे मै सहमत नही। इस प्रस्ताव को भक्त की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान कृष्ण स्वीकार करते हैं। इसके उपरांत वे रूक्कमणी से परिणय सूत्र में बंध जाते हैं। इस विवाह के उपरांत कृष्ण का विवाह सत्यभामा, जामवंती, कालिंदी, मित्रबिंदा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा से भी हुआ। इन विवाह के अलावा कृष्ण के 16100 और विवाह हुए। इस प्रकार कुल 16108 विवाह की विस्तारित कथा सुनाई। कृष्ण का वंश बढता चला गया। इन रानियो से दस दस पुत्र हुए उनकी भी शादी हुईऔर उनके भी दस दस पुत्र हुए जिससे पीढी बढती चली गई। कथा 22 सितम्बर तक चलेगी। कथा पितृपक्ष में चल रही है। आप सभी अत्यंत पवित्रता के साथ रहते हुए पितरो के निमित्त जल अर्पित करे तथा भोजन की सजी थाली में कौआ को भोजन दें और पीपल के वृक्ष में जल दे जिससे पितरो को भोजन और जल मिले। पितरो की प्रसन्नता से ही घर में सुख समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। पितर धरती पर कौआ के रूप में घर के पास आते है। परिवार की समृद्धि देख वे आशिर्वाद देते हैं। इसीलिए आप सभी भक्त जन इस पखवाड़े पितृपक्ष को प्रमुखता से मनाए। पितृपक्ष का सारा कार्य सूर्योदय से सूर्यास्त तक ही करना चाहिए।