धनंजय राय, ब्यूरो पूर्वांचल लाइफ
भदोही।
नीति आयोग की जुलाई में आई आकांक्षी विकासखंडों की रैंकिंग में भदोही के औराई ब्लॉक ने देशभर में 22वां और उत्तर प्रदेश में पहला स्थान हासिल किया। यह आंकड़े कागज़ पर तो शानदार हैं, लेकिन जब हकीकत की ज़मीन पर नज़र दौड़ती है, तो तस्वीर बिल्कुल उलटी नजर आती है।
“तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है,
मगर ये आंकड़े झूठे हैं, ये दावा किताबी है…” अदम गोंडवी
ये पंक्तियाँ औराई ब्लॉक की हालत पर एकदम सटीक बैठती हैं।
जब प्रधान पति बने पंचायत के मुखिया
जिन महिला ग्राम प्रधानों के नेतृत्व में विकास के दावे किए जा रहे हैं, उनमें से अधिकतर को न नीति आयोग का पता है, न “मेरी पंचायत” मोबाइल ऐप का।
बसंतापुर पटखौली की प्रधान मालती देवी तो इन शब्दों का नाम सुनकर ही चुप्पी साध लेती हैं। वे कहती हैं, “काम बेटा देखता है, जहां जरूरत होती है वहां चली जाती हूं। घर भी तो संभालना होता है।”
हुसैनीपुर की प्रधान नीतू जो औराई ब्लॉक में सबसे अधिक वोटों से विजयी हुई थीं, चार साल में हुए कामों की जानकारी पूछने पर सिर्फ “इंटरलॉकिंग” और “पाइप लाइन” का नाम ले पाती हैं। बाक़ी सवालों के जवाब उनके पति के पाले में डाल देती हैं।
पुरुषोत्तमपुर की प्रधान चंदा देवी तो स्पष्ट रूप से कहती हैं, “मैं गृहिणी हूं, पति पूर्व प्रधान हैं, वही सब काम देखते हैं। मैं साथ जाती हूं, वो बात करते हैं।”
जयरामपुर की रेखा देवी बताती हैं कि उनके संयुक्त परिवार में पहले भी प्रधान रह चुके हैं, इसलिए वह घर के बाहर कम ही जाती हैं। नतीजतन, पंचायत से जुड़ी तकनीकी या प्रशासनिक चीज़ें उनके हाथ में नहीं हैं।
“दिन भर घर में रहेलीन… ऊ का बात करीहन…”
खबर के लिए संपर्क किए गए 12 महिला प्रधानों में से अधिकांश के मोबाइल फोन उनके प्रतिनिधियों ने उठाए। सिर्फ चार मामलों में प्रधानों से बात हो सकी। बाक़ी प्रतिनिधियों ने साफ कहा –
“उन्हें कुछ नहीं पता, सब काम हम ही करते हैं… दिन भर घर में रहेलीन, ऊ का बात करीहन, बोल भी न पइहन…”
रैंकिंग बनाम रियलिटी: विकास या दिखावा?
नीति आयोग ने औराई ब्लॉक को स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, कृषि, आधारभूत ढांचा और सामाजिक विकास जैसे बिंदुओं पर बेहतर प्रदर्शन के लिए एक करोड़ रुपये का इनाम दिया। लेकिन कई पंचायतों की हकीकत इस पुरस्कार से मेल नहीं खाती।
चकजोधी के पंचायत भवन में लाइब्रेरी के नाम पर दो-चार किताबें अलमारी में सजी हैं।
जयरामपुर की इंटरलॉकिंग सड़क कीचड़ और गंदे पानी में डूबी है।
गांव का सारा नालों का पानी एक समय के आदर्श तालाब में गिरता है, जिससे वह तालाब अब खुद “बेबसी” की तस्वीर बन गया है।
B.D.O. भी मानते हैं स्थिति की सच्चाई
दिलीप कुमार पासी, खंड विकास अधिकारी कहते हैं,
“महिला प्रधानों को मोबाइल फोन इस्तेमाल के लिए प्रेरित किया जाता है, लेकिन कई कम पढ़ी-लिखी होती हैं। सामंजस्य की दिक्कत आती है, इसलिए वह अक्सर अपने पतियों के साथ ही बैठक में आती हैं।”
निष्कर्ष: तस्वीरें चमकाई जा सकती हैं, हकीकत नहीं
भले ही नीति आयोग की रिपोर्ट में औराई ब्लॉक चमचमाता नजर आए, लेकिन गांवों में महिला सशक्तिकरण और वास्तविक प्रशासनिक भागीदारी अभी भी अधूरी है। यह केवल “कागज़ी सशक्तिकरण” है, ज़मीनी नहीं।
क्या आपको लगता है पंचायतों में महिलाओं की भूमिका असल में हो भी रही है या सिर्फ नाम की प्रधान हैं? अपनी राय हमें भेजिए।