लो ख़त्म होता है सफ़र
अब होने वाली है सहर
दुनिया की न कर फ़िकर
जो है मन में तू वो कर
ज़िन्दगी यूँ कर बसर
हो मौत का कोई न डर
बात का रखना असर
रूठा आए लौटकर
गर्व न कर जीतकर
मायूस न हो हारकर
जीतना है दिल को गर
हार जाओ जीत कर
दोस्ती करना अगर
तो साथ देना उम्र भर
पाई पाई जोड़कर
सब जाना है छोड़कर
याद रखे देश भर
जीवन कर ऐसा गुज़र
सन्तोष कुमार झा,
सीएमडी कोंकण रेलवे।