“सांसारिक माया में उलझा हुआ मन”

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“जब नश्वर शरीर का ही कोई भरोसा नहीं”…

इस संसार में हम सब बस एक यात्री हैं, जिनका ठहराव केवल कुछ समय के लिए है। हमारे शरीर की सांसें, जो जीवन की आधारशिला हैं, उन पर भी हमारा नियंत्रण नहीं। यह विचार मन को गहराई से झकझोरता है कि जब हमारे पास अपने ही शरीर की स्थिरता का भरोसा नहीं, तो बाकी चीजों—धन, संपत्ति, रिश्ते, या सफलता का क्या मोल?

जीवन क्षणभंगुर है। हर एक पल बीत रहा है, और उस बीते पल को कभी वापस नहीं लाया जा सकता। फिर भी, हम भौतिक वस्तुओं, पद-प्रतिष्ठा और मोह-माया के पीछे भागते हैं, मानो यही सब कुछ है। क्या हमने कभी रुककर सोचा है कि जिस धन को हम अपने सुख का आधार मानते हैं, वह हमारा आखिरी समय में हमारे साथ जाएगा भी या नहीं?

सांसारिक माया में उलझा हुआ मन इस सत्य को अक्सर नजरअंदाज कर देता है कि हमारा असली धन हमारी संतुष्टि, सुकून, और मानवता की सेवा में छिपा है। रिश्तों की मिठास, दूसरों के चेहरे पर मुस्कान लाने का आनंद, और आत्मा की शांति ही वह निधि है, जो हमारे जाने के बाद भी याद की जाती है।

तो क्यों न जीवन को एक उत्सव की तरह जिया जाए? क्यों न हर पल को ऐसे जिया जाए जैसे वह आखिरी हो? क्यों न मोह-माया से परे, उस शाश्वत सत्य को स्वीकार करें कि जीवन का असली उद्देश्य केवल संग्रह करना नहीं, बल्कि देना और जीना है।

इस संसार में हम खाली हाथ आए थे और खाली हाथ ही जाएंगे। लेकिन हमारे कर्म, हमारी दयालुता, और दूसरों के प्रति हमारा प्रेम ही हमें अमर बनाते हैं। इसलिए, अपने जीवन को सत्य, प्रेम और सेवा से सजाएं। नश्वरता का विचार केवल भय का नहीं, बल्कि जीवन को पूर्णता से जीने का प्रेरणा स्रोत बन सकता है।

“सांसों का भरोसा नहीं, पर अपने कर्मों से अमर हो सकते हैं।”

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