डीघ विकासखंड की फुलवरिया गौशाला बदहाल, बेसहारा गोवंश झेल रहे दुर्दशा

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गौशाला में ना संचालक और ना ही केयर टेकर की मौजूदगी

प्रशासन की अनदेखी और देखरेख की कमी से गौशाला पूरी तरह से उपेक्षित

धनंजय राय ब्यूरो/पूर्वांचल लाईफ

भदोही। सरकार द्वारा गोवंश संरक्षण के उद्देश्य से बनाई गई गौशालाएं अपनी बदहाल स्थिति के कारण अब गौवंश के लिए अभिशाप बनती जा रही हैं। डीघ विकासखंड के ग्राम पंचायत फुलवरिया में स्थित गौशाला का हाल भी कुछ ऐसा ही है। यहां ना तो बाउंड्री वॉल बनी है, ना ही अपशिष्ट निपटान की समुचित व्यवस्था की गई है। इसके अलावा, मृत गोवंश के उचित निपटान की भी कोई व्यवस्था नहीं है, जिससे आसपास के क्षेत्र में दुर्गंध और गंदगी का माहौल बना रहता है। गौशाला की दुर्दशा की एक बड़ी वजह यह भी है कि यहां कोई संचालक या केयर टेकर नियमित रूप से मौजूद नहीं रहता है। देखभाल के अभाव में गोवंश भूख और बीमारियों से जूझ रहे हैं। चारे और पानी की उचित व्यवस्था न होने से मवेशी इधर-उधर भटकते रहते हैं। प्रशासन की अनदेखी और देखरेख की कमी से गौशाला पूरी तरह से उपेक्षित हो चुकी है।

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गौवंश संरक्षण की योजना हो रही फेल

सरकार द्वारा बेसहारा पशुओं के लिए गौशालाओं का निर्माण कराया गया था ताकि गोवंश को सुरक्षित रखा जा सके। लेकिन फुलवरिया गौशाला की बदहाली यह साबित कर रही है कि यह योजना पूरी तरह से फ्लॉप होती नजर आ रही है। जिम्मेदारों की लापरवाही के कारण यहां गोवंश दयनीय स्थिति में हैं, जिससे यह गौशाला संरक्षण की बजाय दुर्गति का केंद्र बन गई है।

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स्थानीय ग्रामीणों में आक्रोश,प्रशासन से की कार्रवाई की मांग—-

गांव के लोगों का कहना है कि गौशाला की स्थिति को लेकर कई बार शिकायत की गई, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला। प्रशासन से मांग की जा रही है कि जल्द से जल्द गौशाला में बाउंड्री वॉल बनाई जाए, चारे और पानी की व्यवस्था की जाए, और मृत पशुओं के निपटान की उचित व्यवस्था की जाए। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही इस समस्या का समाधान नहीं हुआ, तो वे बड़े स्तर पर आंदोलन करने को मजबूर होंगे।

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जनप्रतिनिधियों की चुप्पी पर सवाल—

स्थानीय जनप्रतिनिधियों की चुप्पी भी सवालों के घेरे में है। सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं जमीनी स्तर पर सफल नहीं हो पा रही हैं, और अधिकारी इस पर ध्यान देने को तैयार नहीं हैं। यदि जल्द ही गौशाला की स्थिति में सुधार नहीं किया गया, तो इससे पशु कल्याण की सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े होंगे। ग्रामीणों को अब प्रशासन की कार्रवाई का इंतजार है।

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