आस्था का महाकुंभ: ज्ञान की मीमांसा और दुनियादारी से दूर की साधना

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पंकज सीबी मिश्रा/पत्रकार एवं विश्लेषक जौनपुर

(पूर्वांचल लाईफ न्यूज) : वैदिक काल से ही ऋषि मुनियों ने अपने तप और ज्ञान के बल पर सनातन की स्थापना की और तब से लेकर आज तक ऋषियों ने ही अनेक शास्त्रों, विज्ञानों एवं वेदांगों की नींव डाली थी। भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों जैसे आर्यभट, भास्कर प्रथम, सुश्रुत, चरक, हलायुध, नागार्जुन, कपिल, वराहमिहिर, महर्षि कणाद आदि ने भारतीय ज्ञान परंपरा को आगे बढ़ाया है और अपने समय से बहुत आगे की कल्पनाओं और विचारों को साकार किया है। उन्होंने हजारों साल पहले ही प्रकृति से जुड़े कई रहस्य उजागर करने के साथ कई आविष्कार किये और युक्तियाँ बतायीं। पश्चिम के अधिकांश वैज्ञानिकों तथा आविष्कारकों ने भारतीय वैदिक विज्ञान की महत्ता को स्वीकार किया है। 144 वर्ष बाद लगने वाले महाकुंभ – 2025 में जब किसी चैनल के पत्रकार ने एक साधक से पूछा की आप पढ़े लिखे हो महाराज .? साधक का जवाब था मैं आईआईटी बॉम्बे का पूर्व छात्र रहा हूं, जी हां उसी आईआईटी बॉम्बे का जिसमे प्रवेश का सपना हर मां बाप अपने बच्चे के लिए देखता है और अपने बच्चे को महंगे से महंगे कोचिंग में पढ़ाता है ताकि बच्चा आईआईटी ज्वॉइन कर सके। वही बच्चा छात्र जीवन में दिन रात एक करके अपने नीद सुख चैन सबकी बलि देकर मेहनत से पढ़ता है और प्रवेश पाकर देश में इंजीनियर बन अच्छे सैलरी पैकेज पर खूब धन कमाना चाहता है पर आप सोचिएगा इस धन का आप करोगे क्या .! कार खरीदोगे, बंग्ला बनवा लोगे पर उससे होगा क्या तब तक तो तुम उस सुख को भोगने से बहुत दूर होगे जिस सुख को भोगने के समय तुम दिन रात एक कर दिए। आईआईटी बॉम्बे से पढ़े साधक आज भी महाकुंभ के शिविरों में जो दिन रात ईश्वर का नाम जप कर रहे हैं तो इस अवस्था में कैसे पहुंचे ? वहां हर सामाजिक जीवन जीने वाला ऐसे महात्माओं से मानों पूछना तो चाहता है, इस दुर्देशा में कैसे पहुंच गए ? यह सामान्य समाज ही है जिसने रील बनाने और धन कमाने में अपने नीचता के पराकाष्ठा पार कर ली है जिसके लिए नौकरी, संसाधन ही मानो सबकुछ हो। वहां कुंभ में साधु का उत्तर : यह अवस्था तो सबसे बेस्ट अवस्था है ज्ञान के पीछे चलते जाओगे तो यहीं पर आओगे। अधिकांश लोगों को ज्ञान विज्ञान और अध्यात्म दोनों विरोधाभासी लगते हैँ जबकि ज्ञान की परम अवस्था ही सच्चा अध्यात्म है। जनपद के पत्रकार और मीडिया विश्लेषक पंकज सीबी मिश्रा ने बताया कि प्राचीन भारत की ऋषि ज्ञान परम्परा अध्यात्म के चरमोत्कर्ष पर इसी हिंदुत्व और सनातन भावना के कारण पहुंची तभी भारत मे आयुर्वेद, खगोलशास्त्र, योग, अर्थशास्त्र, अंतरिक्ष विज्ञान, दर्शनशास्त्र, चिकित्सा शास्त्र, गणित आदि विषयों पर अनुसन्धान किये गए। पूरा महाकुंभ ज्ञानी और पढ़े लिखे संतो से भरा पड़ा है या यूं कहे सम्पूर्ण संत शिविर में सिर्फ वो ज्ञान स्वरूप सन्यासी बैठे है जिन्होंने वो वास्तविकता देख लिया है और उस तथ्य को समझ लिया है जिसमें धन से अधिक बलशाली प्रभु भजन है इसलिए तो वो घृणित मानसिकता वाले कह रहे केवल पाप धुलने महाकुंभ में जाते है लोग उनकी मति मारी गई है। मैं तो कहता हूं पापाचार से बचने और खुद के सनातनी होने का प्रमाण देने महाकुंभ में जाते है लोग और वहा जाकर उन्हें पता चलता है कि मुक्ति सिर्फ गंगा मैया की गोद में है, ज्ञान सिर्फ संत शिविर में है और धन सिर्फ आस्तीनो में है जहां एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स तक की पत्नी खाली आत्मा लिए डुबकी को बेताब है और मूर्ख लोगो के अनर्गल प्रलाप और सनातन के विरुद्ध राजनीतिक हथकंडे कभी आस्था को चोट नहीं पहुंचा सकते ।

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