काशी में स्वर्ण, रजत और ताम्र के 1000 कलशों से होगा शिखर का कुंभाभिषेक
देवी की मूर्ति पर कुमकुमार्चन करने का शास्त्रीय आधार : श्रृंगेरी शंकराचार्य जगद्गुरु स्वामी विधु शेखर भारती
श्रृंगेरी शंकराचार्य ने माता विशालाक्षी की किया अभिषेक
पूर्वांचल लाईफ न्यूज (पंकज सीबी मिश्रा) श्रृंगेरी शंकराचार्य जगद्गुरु स्वामी विधु शेखर भारती महाराज नौ दिवसीय आयोजन एवं कुम्भाभिषेक अनुष्ठान हेतु काशी दौरे पर है। उन्होंने सोमवार को काशी में शक्तिपीठ माता विशालाक्षी देवी का अभिषेक कर पूजन किया। प्रदेश विश्लेषक एवं जनपद जौनपुर के पत्रकार पंकज सीबी मिश्रा ने बताया कि शंकराचार्य महाराज ने माता अन्नपूर्णा मंदिर के नौ दिवसीय कुम्भाभिषेक कार्यक्रम के क्रम में काशी प्रवास पर हैं। जिन्होंने अन्नपूर्णा मंदिर में कुंभाभिषेक कोटि कुमकुमार्चन शुरू किया। अन्नपूर्णा मंदिर के कुंभाभिषेक का नौ दिवसीय महानुष्ठान शृंगेरी शंकराचार्य विधुशेखर भारती महाराज के सानिध्य में शुरू हुआ। महंत शंकर पूरी ने सर्वप्रथम अपने गुरु की पूजा किया, कुमकुमार्चन संकल्प लिया और 75 वैदिक ब्रामणो से मंत्रो के साथ शुरू किया गया। कुमकुमाअर्चन में श्रीचक्र को कुमकुम (सिंदूर) अर्चन करना शामिल है, जो देवी का स्वरूप है। ललिता सहस्रनाम का जाप 10 दिनों की अवधि में कुल 10,000 बार किया जाएगा। ललिता सहस्रनाम में आदि देवी माँ के 1,000 दिव्य नाम हैं और इस प्रकार 10,000 पाठ एक करोड़ के बराबर होते हैं। कोटिकुमारचन के साथ सुवासिनी पूजा, कुमारी पूजा, ललिताहोमा और संतर्पणम भी किया जाता है। मूल कार्यरत शक्तितत्त्वकी निर्मिति लाल रंगके प्रकाशसे हुई है, इस कारण शक्तितत्त्वके दर्शकके रूपमें देवीकी पूजा कुमकुमसे करते हैं। कुमकुमसे प्रक्षेपित गंध-तरंगोंकी सुगंधकी ओर ब्रह्मांडांतर्गत शक्तितत्त्वकी तरंगें अल्प कालावधिमें आकृष्ट होती हैं, इसलिए मूर्तिमें सगुण तत्त्वको जागृत करने हेतु लाल रंगके दर्शक तथा देवीतत्त्वको प्रसन्न करनेवाली गंध-तरंगोंके प्रतीकके रूपमें कुमकुम- उपचार (शृृंगार) को देवीपूजनमें अग्रगण्य स्थान दिया गया है। मूल शक्तितत्त्वके बीजका गंध भी कुमकुमसे पैâलनेवाली सुगंधसे साधर्म्य दर्शाता है, इसलिए देवीको जाग्रत करने हेतु कुमकुमके प्रभावी माध्यमका प्रयोग किया जाता है। कुंभाभिषेक के लिए सहस्त्र छिद्रयुक्त 1000 घट बनवाए गए हैं। इनमें 11 स्वर्ण कलश, 101 रजत कलश, 101 ताम्र कलश, 500 अष्टधातु कलश, 225 पीतल कलश, 11 मृदा कलश बाकी अन्य धातुओं के कलश होंगे। पवित्र नदियों एवं सागरों के जल तथा पंचामृत आदि से शिखर का कुंभाभिषेक होगा। महंत शंकर पुरी ने बताया कि सिद्ध प्रतिष्ठित देवालयों में 100 वर्षों के अंतराल पर कुंभाभिषेक करने का वैदिक विधान है। शास्त्रों के अनुसार मंदिर के शिखर में गर्भगृह में स्थापित देवता के प्राणों का निवास होता है। इसीलिए गर्भगृह में देव विग्रह दर्शन की तरह ही शिखर दर्शन को अत्यंत पुण्य फलदायी माना गया है। सोमवार को शंकराचार्य महाराज मंदिर पहुंचे तो उस वक्त माता का अभिषेक चल रहा था। उन्होंने गर्भगृह में जाकर माता का विधिवत अभिषेक किया। उनके साथ अन्नपूर्णा मंदिर के महंत शंकर पुरी भी थे। अभिषेक के बाद शंकराचार्य ने माता की आरती की। इस अवसर पर मंदिर के महंत सुरेश कुमार तिवारी और महंत राजनाथ तिवारी ने उन्हें माता का चित्र और अंगवस्त्र देकर आशीर्वाद प्राप्त किया। मंदिर में करीब 20 मिनट की उनकी उपस्थिति के समय मंदिर वैदिक मंत्रोच्चार से गुंजायमान रहा।