उत्तर प्रदेश/जौनपुर
मौनी अमावस्या प्रत्येक वर्ष माघ महीने में अमावस्या के दिन मनाई जाती है, इस वर्ष मौनी अमावस्या बुधवार के दिन 29 जनवरी को मनाई जा रही है मौनी अमावस्या 28 जनवरी को सायंकाल 7:32 से प्रारंभ हो रही है और यह 29 जनवरी को बृहस्पतिवार के दिन शाम को 6:05 तक रहेगी! मौनी अमावस्या मनाया जाने के अनेक कारण है लेकिन इसी दिन मानवता के प्रवर्तक विश्व के प्रथम मानव और श्रद्धा के पति तथा मनुस्मृति के रचयिता सम्राट मनु का जन्म हुआ था जिसे सारे सृष्टि के मानव उत्पन्न हुए थे, उन्हीं को आगे चलकर एडम और ईव तथा आदम और हब्बा कहा गया, इसलिए यह विशेष रूप से मनाई जाती है इस दिन मौन रहकर ध्यान रखना और शरीर तथा वाणी पर संयम रखकर माता सरस्वती का ध्यान रखने से वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है और व्यक्ति उन्नति करता है! इस संदर्भ में एक बात और कहना है कि भारत के प्रत्येक पर्व उत्सव जप तप व्रत यज्ञ हवन और मांगलिक कार्य विज्ञान की चरम उन्नति देशकाल संस्कृति सभ्यता पर्यावरण और प्रकृति से अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं और ऐसे में इनका महत्व निर्विवाद रूप से प्रमाणिक है! देश काल के परिवर्तित होने के बावजूद भी मौनी अमावस्या के दिन मौसम में परिवर्तन निश्चित रूप से होता है! इस दिन गंगा नदी में स्नान करना परम पवित्र होता है क्योंकि देश काल रितु और मौसम तथा पर्यावरण के परिवर्तन से और हिमालय पर्वत की जड़ी बूटियां और अन्य तत्वों के प्रभाव से बहते हुए गंगाजल का प्रभाव अमृत के समान हो जाता है अगर किसी कारण गंगा स्नान संभव न हो तो घर में रखे हुए गंगाजल के द्वारा स्नान करने में भी सिद्धि प्राप्त होती है! कुछ लोगों का संदेह है कि इतना पूजा पाठ व्रत करने के बाद भी हमें सिद्ध नहीं मिलती उसका उत्तर है कि पुस्तक एक ही होती है लेकिन जो जिस भाव से और जितने लगन के साथ उसका अध्ययन करता है वही उसका फल पाता है! अगर इतना ही आसान होता तो हर व्यक्ति देव पुरुष देव दूत फरिश्ता ब्रह्म ऋषि संत महात्मा हो जाता लेकिन पूर्ण मनोयोग से समर्पण भाव से गुरु और ईश्वर के प्रति श्रद्धा भक्ति करने से निश्चित रूप से मनोकामना की पूर्ति होती है!
मौनी अमावस्या के दिन अपने पूर्वजों के मुक्ति की कामना करते हुए भगवान श्री हरि विष्णु और शिव जी का ध्यान किया जाता है और वट वृक्ष की पूजा की जाती है और अपने धर्म और देश की कल्याण की कामना करते हुए मानवता के कल्याण की कामना की जाती है क्योंकि सनातन धर्म और भारत देश ही ऐसा विराट और महान धर्म है जो सारी वसुधा को ही अपना कुटुंब मानता है! ब्रह्म बेला में स्नान करने से सबसे अधिक फल की प्राप्ति होती है लेकिन अपने शरीर की स्थिति और क्षमता के अनुसार ही स्नान करना चाहिए यही सबसे बड़ा नियम है स्नान करते हुए गंगा मां का ध्यान करें इसके साथ ही यमुना गोदावरी सरस्वती नर्मदा सिंधु कावेरी नदियों का ध्यान सभी देवी देवताओं का भी ध्यान करना चाहिए और अगर सारे विकार और पाप दूर न कर सके तो भी संकल्प लेकर अपने एक बुराई एक पाप को छोड़ देना चाहिए। मौनी अमावस्या का महापर्व विश्व विख्यात है और गंगा जमुना सरस्वती के पावन संगम पर इस दिन सबसे अधिक लोग स्नान करके पुणे के भाग होते हैं और इस बार 10 करोड़ से अधिक लोग 144 वर्ष के बाद लगने वाले इस महाकुंभ में डुबकी लगाकर अपने को धन्य करेंगे! एक बात और भी बता देना चाहता हूं कि गंगा स्नान करते समय स्नान चाहे जितना करें लेकिन डुबकी केवल तीन बार ही लगाना चाहिए और स्नान करते हुए अपनी-अपने परिजन की अपने हित चिंतक मित्र लोगों की अपने सनातन धर्म और अखंड भारत की ईश्वर से प्रार्थना अवश्य करना चाहिए!