जौनपुर : सावन में कावड़ और शिवलिंग से सुशोभित स्थानों का विशेष महत्व है। जौनपुर का त्रिलोचन महादेव धाम, वाराणसी का मार्कण्डेय महादेव धाम और बाबा विश्वनाथ जैसे दिव्य शिवस्थल सोमवार को हर हर महादेव से गूंज उठते है। जनपद के राजनीतिक विश्लेषक एवं पत्रकार पंकज सीबी मिश्रा नें बाबा भोलेनाथ के जलाभिषेक के पीछे की कहानी में बताया कि ज़ब मंथन से सागर का जल गाढ़ा हो गया, कूर्म के पृष्ठ पर तेजी से घूमती विशालकाय मथानी से उठता हिलोर वातावरण के ताप को बढ़ा रहा था। देव और दानव सोच में थे कि पहला रत्न क्या निकलता है, अचानक बुदबुदे उठने लगे, देवताओं और दानवों में यह देख कर उत्साह आ गया। कुछ निकलने वाला है, शायद पहली बार में ही अमृत निकल आए! मंदराचल को लपेटे वासुकी को तेजी से खींचने से कच्छप की पीठ पर घूर्णन अति तीव्र हो गया जिससे जल का तापमान अत्यधिक गर्म होने लगा । अचानक सागर के पानी नील घुल गया, गाढ़े बुदबुदे विस्तारित होने लगे, वासुकी के फूत्कार से हवाओं में भारीपन आ गया। मथानी का वेग चरम पर पहुँच गया, हर हर करते हुए पानी से पारे जैसी सांद्रता वाला नीला द्रव्य निकलने लगा, साँस खींचने में परेशानी होने लगी, बुदबुदे महाकार होने लगे। सागर ने हलाहल उगल दिया। वायु अवरुद्ध हो गयी, जल के जीव जंतु तड़पने लगे। सब परमपिता ब्रह्मा के पास पहुँचे। यह कालकूट विष है, इसे शमन करने की क्षमता संसार में किसी के पास नही है। ब्रह्मवाणी गूंजी। तो क्या आज प्रलय की घड़ी आ पहुँची परमपिता? देवेंद्र ने प्रश्न किया। लय और प्रलय को धारण करने वाले कैलाश पर विराजमान हैं, तुम लोग यदि महादेव के पास जाकर उनसे प्रार्थना करो तो शायद वह बचा लें क्योंकि महाकाल उन्ही के अधीन है। वह विष को अमृत बनाने की कला जानते हैं, भूत भावन ही कोई रास्ता बताएंगे, ब्रह्मा जी ने कहा। सारे लोग कैलाश भागे, भोलेनाथ के गण प्रहसन खेल रहे थे, माँ सती ताली बजा बजा हँस रहीं थीं। अचानक हाँफते हुए देव दानवों को देख भोलेनाथ ने प्रहसन को रोका और सबके आने का कारण पूछा। कालकूट के उत्पन्न होने और उसके कारण चराचर के जीवन और आये संकट को सुना फिर त्रिशूल उठाया और माता से बोले थोड़ी देर में आते हैं, सबके साथ चल दिये। सागर मंथन स्थल पर पहुंचने देखा नीला विष विस्तार लेता जा रहा है। आदि योगी ने तांडव करना शुरू किया, सागर में विशाल भँवर पड़ने लगी, डमरू की विशेष आवृत्ति लयध्वनि से समस्त विष एक जगह इकट्ठा होता गया। महादेव ने त्रिशूल गाड़ा और अंजुरी भर भर विषपान करने लगे। कर्पूर गौरम करुणावतारं संसार सारं भुजंगेद्र हारं के उद्घोष से समस्त वातावरण गुंजित हो रहा था। विष को कंठ में धारण करते नीलकंठ का ताप बढ़ता जा रहा था। ताप इतना बढ़ गया कि उस स्थान का जल वाष्पित होने लगा। भगवान शिव को ताप में देखकर परमपिता ब्रह्मा ने अपने कमंडल से गंगा की धार से उनके ललाट पर धार देकर गिराने लगे, यह देख समस्त देव दानव कांवर में गंगाजल भर भगवान शिव के मस्तक का जलाभिषेक करने लगे। गंगा का स्पर्श पाकर शिव का ताप गल गया। कालकूट का प्रभाव शमित हो गया, वासुकी को महादेव ने स्पर्श किया, वह चैतन्य हुआ। दिग्गज शांत हुए, कूर्मावतार भगवान विष्णु मुस्कुराये। चराचर के हित के लिए कालकूट पीने वाले महादेव की जयघोष से तीनों लोक भर गए। प्रसन्नाननम् नीलकंठम् दयालम्। माता सती ने देखा नीलकंठ आ रहे हैं, सिर भीगा हुआ, गले में नाग की माला धारण किए हुए, यह रूप तो पहले कभी नही देखा यह क्या कोई नया प्रहसन खेलने गए थे क्या! उनके मन में चल रहे प्रश्नों का शमन करते हुए भोलेनाथ ने सारी कथा कही और बताया कि जो विष उनकी उंगलियों से गिर जाता था उसे नाग ग्रहण कर ले रहे थे, इसलिए ये मुझे इतने प्रिय लगे कि इन्हे मैंने कंठहार बना लिया। माता मुस्कराई और बोलीं, यह तो आपकी महिमा है जो ये तुच्छ जीव भी विषपान कर गए। बाबा को शीतलता मिले इससे भावविभोर हो भक्त बाबा का जलाभिषेक करते है।
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