टेक्नोलॉजी पर आधारित कानून से कहीं लाभ तो कहीं हानि
कुछ धाराओं में परिवर्तन से सरकारी कर्मचारियों को लाभ व जनता का अहित होने की वकीलों ने दी दलील
कहा:पुरानी धाराओं में ही संशोधन व अतिरिक्त धाराओं की होनी चाहिए थी बढ़ोतरी, प्रतियोगी छात्रों को भी होगी मुश्किल
-हिमांशु श्रीवास्तव एडवोकेट —
1 जुलाई से देश में आईपीसी, सीआरपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह तीन नए कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू कर दिए गए हैं। नए कानून में कहीं लाभ तो कहीं हानि है। टेक्नोलॉजी बेस्ड कानून से जज का विवेक प्रयोग कम होगा। तकनीकी को ज्यादा बढ़ावा दिया गया है। नए कानून के संबंध में सेमिनार जागरूकता शिविर इत्यादि के अभाव में न्यायपालिका पुलिस प्रशासन एवं आम जनता के बीच भ्रम की स्थिति बनी हुई है। नए कानून में जहां पुलिस द्वारा किए जाने वाले फर्जी चालान पर रोक लगेगी। चालान कम होंगे मुकदमों की संख्या कम होगी। फॉरेंसिक जांच, मोबाइल इत्यादि का प्रयोग के दूरगामी परिणाम अच्छे होंगे।मुल्जिमानों को बिना सुने तलबी आदेश नहीं या डिस्चार्ज के समय मुलजिम को अपना पक्ष रखने संबंधी नए कानून में प्रावधान, तारीख पर तारीख की प्रक्रिया में परिवर्तन, ऑनलाइन एफआईआर दर्ज करने की सुविधा, चार्जशीट, जजमेंट आदि का डिजिटाइजेशन, तलाशी और जब्ती में ऑडियो वीडियो रिकॉर्डिंग की अनिवार्यता, आतंकवाद को अपराध घोषित करना राजद्रोह को देशद्रोह बना देना, कहीं से भी एफआईआर दर्ज करने ऑनलाइन दर्ज कराने की सुविधा, कोर्ट में ऑडियो वीडियो रिकॉर्डिंग प्रस्तुत करने का प्रावधान, बलात्कार पीड़िता के लिए ई-बयान की सुविधा इत्यादि पक्ष में कानून बने हैं तो कहीं नए कानून में कुछ कमियां भी हैं।इस संबंध में दीवानी न्यायालय के अधिवक्ताओं से राय ली गई।
अध्यक्ष जितेंद्र नाथ उपाध्याय का कहना है कि यह कानून विधिक प्रक्रिया में सुगमता लाने के उद्देश्य से लाया गया लेकिन वास्तव में इसे और उलझा दिया गया जिससे वादकारियों व अधिवक्ताओं को परेशानी का सामना करना पड़ेगा। कानून लाने के पहले जागरूकता शिविर या सेमिनार का आयोजन पुलिस, प्रशासन और न्यायपालिका के बीच कई दिनों तक कराया जाना चाहिए था। जानकारी के अभाव में सभी असमंजस की स्थिति में है। इसके अलावा धारा में परिवर्तन न करके पुरानी धाराओं में संशोधन करना चाहिए था कुछ धाराओं को बढ़ा देना चाहिए था।
पूर्व मंत्री सुभाष चंद्र यादव का कहना है कि नया कानून केवल पुलिस व प्रशासन के हित में है। जनता व अधिवक्ता के हित के प्रतिकूल है। इसके अलावा पीसीएस जे या एचजेएस की तैयारी करने वाले छात्रों को नए सिरे से तैयारी करनी पड़ेगी। जिनकी उम्र सीमा अधिक हो चुकी है उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। अधिवक्ताओं को भी जनता को न्याय दिलाने के लिए नए सिरे से पूरे कानून पढ़ने पढ़ेंगे जज को भी निर्णय करने में कठिनाई होगी।
पूर्व अध्यक्ष तेज बहादुर सिंह ने कहा कि जल्दी में संसद से पास कराकर जनता पर कानून लागू किया गया। पूरी तरह न विचार किया गया न जनता के बीच में प्रचारित किया गया जिसकी वजह से लोग कानून से अनभिज्ञ है। पालन में कठिनाई होगी त्वरित न्याय का उद्देश्य विफल हो जाएगा जो कि न्याय प्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगाएगा।जनता का न्याय से विश्वास उठ जाएगा। न्यायपालिका पर ही जनता पूरा भरोसा करती है।दो-चार साल तक निर्णय तो हो जाएगा लेकिन न्याय नहीं हो पाएगा। न तो वादी के साथ न तो मुलजिम के साथ। जानकारी के अभाव में अधिवक्ताओं व जज को भी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।
अधिवक्ता प्रवीण सिंह सोलंकी ने कहा कि पुराने कानून को मॉडिफाई करके अनुपयोगी धारा हटाई गई कुछ नई धाराएं जोड़ी गई लेकिन मुल्जिम पक्ष के अधिकारों में कमी की गई। पुराने मुकदमों में प्रक्रिया में जो अधिकार मिले थे उनमें नए कानून में कमी करने से यह असमंजस की स्थिति है कि मुल्जिम को पुराने अधिकार मिलेंगे कि नए कानून के तहत अधिकार मिलेंगे। कानून लागू करने के पहले ट्रेनिंग, आम जनमानस, अधिवक्ताओं, जज व प्रशासन का वर्कशॉप होना चाहिए था। वास्तविकता यह है कि 90 फीसद कानून कोई जानता ही नहीं है।
अधिवक्ता दुष्यंत सिंह ने बताया कि नए कानून का मुख्य उद्देश्य त्वरित निस्तारण है।महिलाओं के संबंध में सख्त प्रावधान किए गए हैं लेकिन ऑनलाइन बयान उतना प्रभावशाली नहीं होगा जितना अधिकारी के सामने हाव-भाव व अन्य भाव भंगिमा देखकर होता। बिना जांच एफआईआर दर्ज न होने का प्रावधान पुलिस को स्वच्छंद बनाएगा।
अधिवक्ता उपेंद्र विक्रम सिंह ने कहा कि नए कानून में पुलिस द्वारा की गई फर्जी चालान पर रोक लगेगी क्योंकि वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य कर दी गई है। वीडियो रिकॉर्डिंग के माध्यम से पुलिस द्वारा बयान लेने में पुलिस बयान के पूर्व अनुचित प्रभाव का इस्तेमाल कर सकती है। अगर मुल्जिम बेगुनाह है तो बाद में कोर्ट में बेगुनाह साबित होने में कठिनाई होगी। महिलाओं से संबंधित छेड़खानी इत्यादि के मामलों में जांच के 15 दिन बाद एफआईआर दर्ज करने की स्थिति में गरीब कुचला जाएगा। धनी वर्ग पुलिस को प्रभावित करने में सफल होगा। पुलिस को जमानत के बाद भी रिमांड पर लेने की पावर दी गई है जिससे पुलिस जबरन वीडियो ऑडियो के माध्यम से कन्फेशन करवा सकती है। आजकल सोशल मीडिया पर फेक वीडियो, ऑडियो बनाना बहुत कठिन नहीं है इसलिए इलेक्ट्रॉनिक माध्यम में टूल्स का क्या मानक है जिसे सत्यता का निर्धारण हो सके यह तय नहीं किया गया है। तकनीक को ज्यादा महत्व दिया गया है इससे जज अपने विवेक का कम इस्तेमाल कर पाएंगे। कानून लागू करने के पहले जागरूकता सेमिनार करीब 1 महीने तक रोजाना होना चाहिए था। अभी पुलिस प्रशासन एवं न्यायपालिका में कानून को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है।