मानसूनी वर्षा और मानसून पर सर्वश्रेष्ठ लेख “डॉ दिलीप कुमार सिंह” की कलम से

Share

मानसून व मानसूनी वर्षा और भारत “डॉ दिलीप कुमार सिंह” मौसम विज्ञानी ज्योतिष शिरोमणि एवं निदेशक

“पूर्वांचल लाइफ जौनपुर”

“प्रस्तावना”

मानसूनी वर्षा विश्व का सबसे जटिल मौसमी चक्र है और यह हमेशा से एक अबूझ पहेली रहा है आज सुपर कंप्यूटर के युग में भी और उपग्रह के द्वारा संपूर्ण जानकारी इकट्ठा करने के बाद भी मानसून की दशा और दिशा इसके बारे में अनुमान व्यक्त कर पाना असंभव है। ज्योतिष और पंचांग जहां 10 वर्ष में 9 वर्ष मौसम की सटीक भविष्यवाणी करते हैं वहीं पर विज्ञान और सुपर कंप्यूटर तथा उपग्रह पर आधारित भविष्यवाणी 10 वर्ष में 7 वर्ष बुरी तरह से चकमा खा जाते हैं पिछले वर्ष भी यही हुआ और विगत 50 वर्षों में ऐसा ही होता चला आया है।

“क्या है मानसून”

मानसून अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है मौसमी हवाएं या मौसम का चक्र विशेष कर यह शब्दावली भारत के उपमहाद्वीप और उसके आसपास के लिए प्रयुक्त होता है जिसमें भारत के अलावा पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैंड और कंबोडिया तथा चीन के कुछ भाग शामिल हैं, सामान्य रूप से 6 मास तक समुद्र से भारी नम हवाएं बादलों के साथ दक्षिण पश्चिम दक्षिण पूर्व से उत्तर पूर्व उत्तर पश्चिम भारत की ओर बढ़ती हैं जिसका प्रारंभ जून से लेकर अक्टूबर तक रहता है और 6 महीने सूखी हवाएं जमीन से समुद्र की तरफ उत्तर पश्चिम उत्तर से दक्षिण पश्चिम दक्षिण पूर्व दिशा की ओर बढ़ती हैं, यह समय नवंबर से लेकर मार्च महीने तक का होता है। प्रकार अंतर से यह समय 15 दिन आगे और पीछे घट या बढ़ सकता है।

मानसूनी वर्षा और भारत का भविष्य भारत और उसके पड़ोसी देश का भविष्य आज भी मानसूनी वर्षा पर ही निर्भर है। केवल कृषि बागवानी और पशुपालन ही नहीं बल्कि पेड़ पौधे मनुष्य और जंतु तथा वनस्पतियों का जीवन भी इसी अमृत वर्षा करने वाले मानसून पर निर्भर रहता है सामान्य रूप से मानसून केरल के तटीय भागों और अंडमान निकोबार में 20 मई से 30 मई के बीच पहुंच जाता है लेकिन कभी-कभी यह 1 जून से 7 जून के बीच आता है लेकिन 90 प्रतिशत यह 25 मई से 5 जून के बीच भारत में प्रवेश कर जाता है। यदि मानसून 10 जून तक भारत में केरल के तट पर प्रवेश नहीं करता तो संपूर्ण भारत में बड़ी विषम स्थितियों सूखा और अकाल जैसी स्थिति पैदा हो जाती हैं और जब कभी मानसून रूठ जाता है तो सारा विज्ञान टेक्नोलॉजी और सारे संसाधन मिलकर भी सूखा अकाल का मुकाबला नहीं कर पाते बंगाल का 1943 का प्रसिद्ध अकाल प्रसिद्ध ही है जिसमें बंगाल की एक चौथाई जनसंख्या साफ हो गई थी। इसी प्रकार पूरे भारत के हर राज्य में हर वर्ष कभी न कभी सूखा पड़ता है लेकिन लंबा सूखा अकाल का भयानक रूप ले लेता है।

मानसून की दिशा और इसका समय चक्र

सामान्य रूप से 31 मई या 1 जून तक मानसून भारत में प्रवेश कर जाता है सबसे पहले यह अंडमान निकोबार में प्रवेश करता है जहां सामान्य रूप से 20 से 25 मई तक पहुंच जाता है यह मानसून दो दिशाओं में बंट जाता है पहले बंगाल की खाड़ी का मानसून तमिलनाडु आंध्र प्रदेश तेलंगाना उड़ीसा बंगाल बिहार छत्तीसगढ़ झारखंड उत्तर प्रदेश नेपाल भूटान सिक्किम होते हुए बांग्लादेश और पूर्वोत्तर भारत में कभी हल्की कभी सामान्य तो कभी घनघोर वर्षा करता है इसमें परेशानी तब पैदा होती है जब यह उत्तर पश्चिम दिशा के बजाय आगे बढ़ते हुए उड़ीसा और बंगाल से उत्तर पूर्व की ओर मुड़ जाता है जिसका फल होता है कि बंगाल के कुछ भाग बिहार झारखंड और उत्तर प्रदेश में भयानक सूखा पड़ जाता है और बांग्लादेश पूर्वोत्तर भारत में भयंकर बाढ़ आ जाती है।

मानसून की दूसरी शाखा केरल से होते हुए कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर, पाकिस्तान होते हुए हिमालय की ओर निकल जाती है यहां भी वही परेशानी होती है जब कभी इसकी दिशा महाराष्ट्र से आगे बढ़कर पश्चिम उत्तर की ओर मुड़ जाती है तब पाकिस्तान अफ़गानिस्तान अरब देशों में बाढ़ जैसी परिस्थितियों होती हैं लेकिन राजस्थान पश्चिमी उत्तर प्रदेश दिल्ली, पंजाब, हरियाणा में भयंकर सूखा पड़ जाता है और जब कभी यह दोनों मानसूनी भाग एक दूसरे से मिलते हैं, अर्थात बंगाल की खाड़ी का मानसून उत्तर पूर्व में और अरब सागर का मानसून उत्तर पश्चिम में बढ़ता हुआ मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश विशेष कर पूर्वांचल में मिलता है तब मध्य प्रदेश और पूर्वी उत्तर प्रदेश में महा भयंकर घनघोर वर्षा होती है और बाढ़ की स्थितियां पैदा हो जाती हैं, ऐसा होने पर एक सप्ताह से 15 दिन तक लगातार वर्षा होती है जैसे कि जौनपुर में 1955, 1971, 1984, एवं 1985 में हो चुकी हैं।

कैसा रहेगा इस वर्ष का मानसून भारत का मौसम विभाग और स्काईमेट स्काई वेदर तथा अन्य विदेशी चैनल इस वर्ष भारत में बहुत अच्छी मानसूनी वर्षा की भविष्यवाणी कर रहे हैं और 105 प्रतिशत वर्षा का अनुमान व्यक्त कर रहे हैं लेकिन हमारे अलका शिप्रा वैष्णवी ज्योतिष मौसम पूर्वानुमान और विज्ञान अनुसंधान केंद्र का आकलन है कि इस वर्ष मानसूनी वर्षा तो अच्छी होगी प्रचंड और घनघोर होगी लेकिन कहीं बहुत अधिक तो कहीं कम और कहीं-कहीं सूखा पड़ने की पूरी संभावना है और जून जुलाई अगस्त सितंबर हर एक महीने में बीच-बीच में सूखा और भारत के कुछ प्रदेशों में भयानक सूखा भी पड़ने की संभावना है सारे सरकारी और प्राइवेट मौसम विभाग जहां मानसून के 1 जून में भारत में प्रवेश करने की संभावना बता रहे हैं वहीं हमारा अलका शिप्रा वैष्णवी केंद्र इस वर्ष मानसून के केरल में और अंडमान निकोबार दीप समूह में 16 और 17 मई को ही प्रवेश कर जाने की भविष्यवाणी कर रहा है और 17 से 22 में तक केरल श्रीलंका तमिलनाडु के तटीय भागों पर घनघोर वर्षा होने की संभावना है और एक सप्ताह तक संपूर्ण दक्षिणी भारत में और अंडमान निकोबार में वर्षा करने के बाद यह मानसून धीमा पड़ जाएगा इस प्रकार दूसरा मानसूनी चक्र 25 म से अंडमान निकोबार मई प्रारंभ होगा और 29 में से 3 जून के बीच केरल में प्रवेश कर जाएगा यह मानसून 5 से 10 जून तक गोवा कर्नाटक के आगे महाराष्ट्र में 10 से 15 जून तक गुजरात मध्य प्रदेश तमिलनाडु उड़ीसा तेलंगाना पूर्वोत्तर भारत में और 15 से 25 जून के बीच उत्तर प्रदेश सहित उत्तर भारत के अधिकांश भागों में और दिल्ली में पहुंच जाएगा 1 से 5 जुलाई तक के जम्मू कश्मीर होते हुए भारत की सीमाओं को पार कर जाएगा।

इस वर्ष विशेष करके केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, पूर्वी उत्तर प्रदेश, राजस्थान के कुछ भागों में और पूर्वोत्तर भारत के अधिकांश भागों में जून जुलाई में भीषण वर्षा होगी जबकि राजस्थान के कुछ भागों महाराष्ट्र के कुछ भागों तमिलनाडु और तेलंगाना मध्य और उत्तर पूर्वी उत्तर प्रदेश बिहार के कुछ भागों पंजाब हरियाणा और कश्मीर के अनेक भागों में माध्यम से विकट दर्जे का सूखा पड़ने के भी आशंका है जून और अगस्त में वर्षा औसत से अधिक जुलाई में सामान्य और सितंबर में कहीं कम तो कहीं बहुत अधिक होगी अनुमान एवं भविष्यवाणी है कि 5 अक्टूबर तक मानसून पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा जून जुलाई और अगस्त में बंगाल की खाड़ी में दो और अरब सागर में एक भीषण महा चक्रवात उत्पन्न होने की प्रबल संभावना है जिसमें एक महा चक्रवात से बहुत भयानक विनाश कारी होनेकी संभावना दिख रही है। 1984 एवं 1985 के बाद इस वर्ष जौनपुर में भी बाढ़ की संभावना बन रही है।

मानसून को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक

मानसून को प्रभावित करने वाले अनेक कारक है जिसमें मुख्य कारक उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर बर्फबारी की स्थिति हिमालय और पामीर के पठारों पर सर्दी गर्मी का प्रभाव गरम और ठंडी जलधाराएं ला नीना और अल नीना प्रभाव अप्रैल महीने में भारत में गर्मी और सूर्य की स्थिति सूर्य में होने वाले प्रचंड विस्फोट सौर ज्वाला है सौर कलंक परमाणु परीक्षण प्रदूषण जंगल और हरियाली का घटना या बढ़ता सीमेंट कंक्रीट के जंगल का बढ़ते जाना उद्योग धंधों कूड़े कचरो से और मोटर गाड़ियों से उत्पन्न होने वाला जहरीला प्रदूषण सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणें और अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी के पानी का अधिक गर्म होना या कम गर्म होना और इसके साथ-साथ बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में चक्रवात और महा चक्रवातों का जन्म लेना फ्रिज और बिजली के चूल्हे एयर कंडीशनर जैसे यंत्रों के प्रयोग से उत्पन्न विषैली गैसें और धाराएं होता है यह सभी कारक मानसून को गहराई तक प्रभावित करते हैं जिस वर्ष मई में लगातार गर्मी नहीं पड़ती और बीच में वर्षा होती है तो मानसून का चक्र विखंडित हो जाता है इसी प्रकार मई या अप्रैल में उत्पन्न होने वाले चक्रवात और महाचक्रवात भी मानसून को कमजोर कर देते हैं जैसा पिछले वर्ष अरब सागर में उत्पन्न महा चक्रवात ने किया था।

उपसंहार मानसूनी वर्षा प्रकृति का वरदान है साथ-साथ यह भीषण विनाश बाढ़ और जल प्रलय भी ले आती है भयंकर मूसलाधार का कई दिनों तक चलने वाली वर्षा में जहां गांव शहर बस्तियां जलमग्न हो जाते हैं वहीं पर भीषण भूस्खलन और कटाव धन-जन पशु पक्षियों का भीषण विनाश भी करता है लेकिन जहां तक इसके संपूर्ण योगदान की बात है तो मानसूनी वर्षा अधिक होने से नुकसान 25% होता है जबकि मानसूनी वर्षा के रूठ जाने से 90% नुकसान होता है इसलिए मानसून भारत के उपमहाद्वीप की जीवन रेखा और एक वरदान कहा जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!