सादगी का सौन्दर्य पुस्तक का लोकार्पण – बी.एच.यू.

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वाराणसी। प्रसिद्ध और वरिष्ठ गजलकार तथा बीएचयू के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो० वशिष्ठ अनूप के रचनाकार्य पर केन्द्रित मूल्यांकनपरक ग्रन्थ
“सादगी का सौन्दर्य” वशिष्ठ अनूप का सृजन’ का विभाग के आचार्य रामचन्द्र शुक्ल सभागार में भव्य लोकार्पण हुआ। समारोह में परिचर्चा के दौरान वक्ताओं ने प्रो० अनूप के रचना-संसार पर बात करते हुए कहा कि उन्होंने लम्बी और वैविध्यपूर्ण साहित्य-साधना की है। उनका लेखन व्यापक, गहन और स्तरीय है। इस पुस्तक में वशिष्ठ अनूप के गम्भीर और स्तरीय सृजन का बेहतरीन मूल्यांकन हुआ है। पुस्तक में डॉ० रामदरश मिश्र, डॉ० रामचंद्र तिवारी, डॉ० शिवकुमार मिश्र, डॉ० जितेन्द्र श्रीवास्तव, पंकज गौतम आदि बयालीस विद्वानों के आलेख शामिल हैं, जिसका सम्पादन जहीर कुरेशी और डॉ० मीनाक्षी दुबे ने किया है। इस पुस्तक पर अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रो० अनिल कुमार राय ने उनकी काव्य यात्रा पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा की वशिष्ठ अनूप के गीत और उनकी ग़ज़लें इस प्रतिकूल समय में दुनिया को सुन्दर बनाने का यत्न करती हैं।उनकी ग़ज़लें समय से संवाद करती है और एक बेहतर समाज बनाने का प्रयास कर रही हैं। उनमें उन्होंने 40 वर्षों से लगातार लिखा है और स्तरीय लिखा है।जन-संप्रेषणीयता की कलात्मकता, वैचारिक गंभीरता और सहज कलात्मकता उनकी विशेषताएं है। मुख्य अतिथि बी.एच.यू .के कुलसचिव प्रो० अरुण कुमार सिंह ने कहा कि वशिष्ठ अनूप मेरे प्रिय कवियों में से एक हैं। मैं उनकी ग़ज़लों का प्रशंसक हूँ। उन्होंने अनूप जी की कवतिाओं की अन्य महत्वपूर्ण कवियों की कविताओं से तुलना करते हुए उन्हें व्यापक संवेदनाओं का कवि बताया।

आगरा से आए प्रो० उमापति दीक्षित ने उनके काव्य के संगीत और लोक पक्ष की विशेषताओं पर विस्तार से प्रकाश डाला।उन्होंने कहा कि यह हिन्दी के शोधार्थियों और शिक्षकों के लिए आवश्यक पुस्तक है। गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय गांधीनगर के विभागाध्यक्ष हिन्दी -प्रो० संजीव दुबे ने प्रो०अनूप पर केन्द्रित इन लेखों की समीक्षा करते हुए इसे श्रेष्ठ और मूल्यावान बताया, और कहा कि वे हमारे समय की प्रमाणिक शिनाख्त करने वाले साहित्यकार हैं। विषय-प्रवर्तन करते हुए डॉ० अशोक कुमार ज्योति ने प्रो० अनूप की सभी रचनाओं और पुस्तकों में शामिल लेखों की विस्तार से चर्चा की तथा उनकी कविताओं में प्रेम और संघर्ष की गहनता पर प्रकाश डाला और पुस्तक को जरूरी पुस्तक बताया। आरंभ में प्रो० वशिष्ठ अनूप ने अपनी रचना-यात्रा और लेखन प्रक्रिया पर वक्तव्य दिया। संचालन डॉ० प्रीति त्रिपाठी ने और धन्यवाद ज्ञापन डॉ० प्रियंका सोनकर ने किया।

कार्यक्रम में शोधार्थी अश्वनी तिवारी, सौरभ तिवारी, रोशनी उर्फ धीरा, आर्यपुत्र दीपक एवं शिक्षकों, छात्र-छात्राओं के साथ ही नगर के साहित्यकारों की भागीदारी भी उल्लेखनीय थी।

ग़ज़लकार वशिष्ठ अनूप के प्रसिद्ध ग़ज़ल की कुछ पंक्तियां हैं —

“अच्छे बुरे दौर में यह पहचान है मुश्किल
यहां हर बदचलन अच्छा व्यवहार करता है।”

“उसूलों पे जो आँच आए तो टकराना जरूरी है
जो जिंदा है उन्हें जिंदा नजर आना जरूरी है।”

“महल में बैठकर वह आमजन की बात करता है
कोई आवारा मीरा के पदों का गान करता है।”

“ गदोरी पर रची मेहंदी की लाली याद आती है
मुझे अक्सर वह भोली-भाली लड़की याद आती है।”

“हमेशा रंग बदलने की कलाकारी नहीं आती
बदलते दौर की हमको अदाकारी नहीं आती।”

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