बॉम्बे हाई कोर्ट ने खारिज कर दी कानून छात्रों की जनहित याचिका अदालत ने कहा, सर्वाधिक अवकाश कानून के अधीन है !

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पूर्वांचल लाईफ / हंसराज कनौजिया, मुंबई

मुंबई : बॉम्बे हाई कोर्ट ने रविवार 21,जनवरी की चार कानून छात्रों द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया। जिसमें अयोध्या राम मंदिर के उद्घाटन दिवस पर 22 जनवरी छुट्टी घोषित करने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी। रविवार को आयोजित एक विशेष बैठ में न्यायमूर्ति जी.एस कुलकर्णी और न्यायमूर्ति (बॉम्बे उच्चन्यायालय) नीला गोखले पीठ ने कहा, कि जनहित याचिका प्राचार्य उन्मुख मुकदमा है और छुट्टी घोषित करने का निर्णय अधिकारी के दायरे में आता है, इसके अलावा, अदालतों ने बार बार माना है कि राज्य द्वारा शक्ति का ऐसा प्रयोग मनमाना नहीं है बल्कि धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतो के अनुसार है। पीठ ने कहा कि, छुट्टियों को नीति के मामले के रूप में घोषित किया जाता है, विभिन्न धर्म मनमाने ढंग से नहीं हो सकते हैं, लेकिन निरपेक्षता के सिद्धांतों के अनुरूप विभिन्न अदालतों ने लगातार माना है और याचिकाकर्ता ( बॉम्बे हाई कोर्ट) मनमानी का मामला बनाने मे विफल रहा है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को लगाई फटकार! सुप्रीम कोर्ट की अविवेकशील पर सवाल उठाने पर याचिकाकर्ता को फटकार लगाई। साथ ही पीठ ने कहा कि एक राजनीति से प्रेरित याचिका प्रतीत होती है और याचिका का लिहाजा और खुली अदालत में दी गई दलीलें प्राचार्य परीक्षण और दिखावा दिखती है।

बाहरी कारणों से बाहर की गई याचिका।

अदालत ने कहा कि, हमे विश्वास करना मुश्किल लगता है कि कानून के जिन छात्रों ने अभी तक इस पेशे मे प्रवेश नहीं किया है, जिन्होंने ऐसे आरोप लगाए है।जैसे कि याचिका में उल्लेख है। हमे इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह जनहित याचिका अनावश्यक कारणों से दायर की गई है। अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता केंद्र सरकार की 1968 की अधिसूचना को चुनौती दे रहे हैं, जो राज्य सरकार को छुट्टियों घोषित देने का अधिकार देती है, लेकिन यह अधिसूचना याचिका के साथ संलग्न नहीं थी। इसी अधिसूचना के जरिए सरकार ने 22 जनवरी को राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा दिवस के मौके पर महाराष्ट्र में सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की है।

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