“नहर सूखी, उम्मीदें टूटी – निजी साधनों से धान रोपने को मजबूर हुए किसान”

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शाहगंज (जौनपुर)।
बड़ा गांव के खेतों में इस बार नहर का पानी नहीं, बल्कि किसानों की मेहनत और आंसुओं की सिंचाई हो रही है। बीते एक महीने से नहर में पानी की एक बूंद नहीं आई, जिससे यहां के अन्नदाता परेशान हैं। सरकार की योजनाएं कागज़ों तक सीमित रह गई हैं और धरातल पर किसान निजी साधनों से अपनी फसल बचाने में जुटे हैं।

गांव के बुजुर्ग किसान समीम हैदर कहते हैं, “उम्मीद थी कि जुलाई की शुरुआत तक नहर का पानी आएगा, लेकिन इंतजार अब तक जारी है।” निराश होकर अब किसान ट्यूबवेल और डीजल पंप से सिंचाई कर रहे हैं, जो उनकी जेब पर भारी पड़ रहा है।

मिराज हाशमी ने बताया कि वे बीते तीन दिन से लगातार ट्यूबवेल चला रहे हैं। “पानी तो नहर से नहीं आया, अब जेब से पैसा बहाकर धान रोप रहे हैं।”

वारिस हाशमी ने तंज कसते हुए कहा, “सरकार मंचों पर किसानों को अन्नदाता कहती है, लेकिन बड़ा गांव में न तो नहर में पानी है और न कोई सरकारी सहायता। अगर यही हाल रहा, तो किसान कर्ज में डूबते रहेंगे।”

नहर के किनारे खेती कर रहे हरिराम, अर्जुन मौर्या, भीम, दुर्गा प्रसाद, हरिचंद और मुनव्वर ने बताया कि भीषण गर्मी में डीजल से सिंचाई करना गरीब किसानों के लिए महंगा सौदा बन गया है।

किसानों का गुस्सा अब सिंचाई विभाग की उदासीनता पर है। उनका कहना है कि अगर जल्द नहर में पानी नहीं छोड़ा गया, तो उनकी फसलें सूख जाएंगी और लागत दुगुनी हो जाएगी।

अब सवाल यह है – क्या किसान सिर्फ वादों के सहारे जिंदा रहेगा, या उसे वक्त पर पानी भी मिलेगा?

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