इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम फैसला
उच्च न्यायालय पिंकी राजगुरु
इलाहाबाद। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि यदि कोई व्यक्ति किसी महिला को बलात्कार के इरादे से निर्वस्त्र करता है, तो यह कृत्य भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 511 के अंतर्गत “बलात्कार का प्रयास” माना जाएगा।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति रजनीश कुमार ने प्रदीप कुमार बनाम राज्य मामले में की। मामले में आरोपी प्रदीप कुमार ने वर्ष 2004 में एक महिला का अपहरण कर उसे लगभग 20 दिनों तक एक स्थान पर बंधक बनाकर रखा था। इस दौरान उसने पीड़िता के कपड़े उतारकर बलात्कार की कोशिश की, लेकिन पीड़िता ने साहस दिखाते हुए उसका विरोध किया और कृत्य को सफल नहीं होने दिया।
मामले में ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी पाते हुए 10 वर्षों की सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी। इस फैसले को चुनौती देते हुए आरोपी ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया।
कोर्ट ने अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व के निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि बलात्कार के प्रयास की पुष्टि केवल अंतिम कृत्य से नहीं, बल्कि उसकी मंशा और प्रारंभिक कदमों से भी होती है। महिला को बलात्कार के उद्देश्य से निर्वस्त्र करना उसी श्रेणी में आता है।
इसके साथ ही, कोर्ट ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि एफआईआर दर्ज करने में हुई देरी से अभियोजन पक्ष का मामला कमजोर हुआ है। न्यायालय ने माना कि देरी के पीछे पर्याप्त कारण थे। आरोपी द्वारा रंजिश के चलते झूठे आरोप लगाए जाने की दलील को भी साक्ष्य के अभाव में खारिज कर दिया गया।
अपीलकर्ता की ओर से अधिवक्ता आशुतोष सिंह और बी.एस. पटेल ने पक्ष रखा, जबकि राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ता बदरुल हसन ने न्यायालय में प्रस्तुति दी।
यह फैसला महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों की गंभीरता को रेखांकित करता है और बलात्कार के प्रयास की कानूनी व्याख्या को स्पष्ट करता है।