हाथ में पेंसिल पेन, स्कूल बैग की जगह कंधे पर कचरे का ढेर, चिंतनीय

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पूर्वांचल लाइफ/मनीष श्रीवास्तव

सर्वशिक्षा अभियान से दूर, कचरा बीनने को क्यों है मासूम मजबूर

उत्तर प्रदेश/जौनपुर
पेट की भूख और गरीबी की आग को शांत करने के लिए शिक्षा से वंचित रहने वाले मासूम बच्चे बीन रहे कचरा। बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्रदान करा कर शिक्षित करने के लिए सरकार द्वारा तमाम योजनाएं चल रही हैं और सरकार प्रति वर्ष सर्वशिक्षा अभियान पर करोड़ो रुपये खर्च करती हैं के बावजूद आज भी जिले में अनेको जगह कचरा बीनने वाले ऐसे बच्चों को देखा जा सकता है जो आज भी शिक्षा से वंचित हैं, सर्वशिक्षा अभियान के तहत 6 से 14 साल के सभी बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा प्रदान कराना मुख्य उद्देश्य है। कचरा बीनने वाले बच्चों में स्वास्थ्य का खतरा भी मंडरा रहा है जिन्हें कभी भी गंभीर बिमारी अपनी गिरफ्त में ले सकती हैं, जिनके भविष्य को लेकर गंभीर चिंता की आवश्यकता है। कचरा बीनने वाले एक ऐसे ही एक बच्चे ने बताया कि हम लोगों द्वारा सड़क से बीने गए कचरे को कबाड़ी वाले कुछ पैसे देकर बीने गए सामान को खरीद लेते हैं। कचरा बीनने वाले बच्चे अपना पेट भरने के साथ-साथ घर को चलाने के लिए परिजनों की मदद करते हैं।

भारत में “बाल दिवस” बच्चों के अधिकारों एवं शिक्षा और कल्याण के बारे जागरुकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है यह हर साल 14 नवंबर को भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जन्मदिन पर मनाया जाता है। पूरे भारत में बच्चों के लिए कई शैक्षिक और प्रेरक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। बाल दिवस की स्थापना सर्वप्रथम 1954 में सर्वभौमिक बाल दिवस के रूप में की गई थी। खबर में प्रकाशित चित्र को देख कर ऐसा महसूस होता है कि जिस वक्त हमारे और आपके बच्चे अपने कंधे पर स्कूल बैग हाथों में पानी की बोतल लेकर स्कूल जाते हैं, उसी दौरान समाज में कुछ ऐसे भी बच्चे होते हैं जो कूड़ा बीनने के लिए सड़को पर निकल कर जीवन जीने के लिए जद्दोजहद करते दिखाई देते हैं जो गरीबी से जुझते हुए आमदनी का सहारा कूड़े ढूँढ रहे हैं, ऐसे मासूम कूड़े के ढेर पर ही जैसे जिंदगी का फलसफा सीख रहे हैं।

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